प्यार का रंग
काव्य साहित्य | कविता मधुलिका मिश्रा1 Mar 2025 (अंक: 272, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
प्यार में
डूबी हैं
फ़िज़ाएँ
और ख़ुशी से
सजी हैं
चारों दिशाएँ।
हर ज़र्रे पे
चढ़ा है
इश्क़ का
नशा जबसे,
गुम हो गया
हर दर्द तबसे।
मरहमी हैं
प्यार की बातें,
जो हर ज़ख़्म
को भर दें,
बिन कुछ बोले
बिन कुछ माँगे
बस जहाँ को
अपने रंग में रँगें।
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