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कथा साहित्य | लघुकथा ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'10 Oct 2017
उमेश ने सहानुभूति के साथ कहा, "भाईजी! आप तो बहुत होशियार बैंक मैनेजर थे। फिर उस नेता के चक्कर में आ कर नोटबंदी के लाखों रुपए, वह भी एक ही सीरियल वाली गड्डी के कैसे दे दिए? यदि सावधानी बरतते तो आज आप निलम्बित नहीं होते। फिर ज़रूरी नहीं था कि किसी नेता का काम किया जाए।"
"उस नेता का काम करना था। चाहे जैसे भी हो।"
"लेकिन अपने हाथ-पैर तो बचाने थे," उमेश ने कहा, "यदि यह प्रमाणित हो गया कि तुम ने नियम को ताक में रख कर यह काम किया है तो एफ़आईआर कट सकती है। जेल हो सकती है।"
"ऐसा नहीं होगा," वह बोला, "नेता जी मेरे साथ हैं।"
"मान लो ऐसा हो गया तो ?"
"हो जाने दो, आज बैंक सम्हाल रहा था कल को नेता बन कर देश सम्हालूँगा," वह प्रत्यक्ष बोला, मगर मन ही मन बुदबुदाया, "क्या फ़र्क पड़ता है जहाँ से आया था वहीं चला जाऊँगा।"
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