मानवीय संवेदनाओं का चित्रण कहानी-संग्रह ‘वो मिले फेसबुक पर’
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा सुरेन्द्र अग्निहोत्री1 May 2023 (अंक: 228, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: वो मिले फेसबुक पर,
लेखक: जुपिन्द्रजीत सिंह
प्रकाशक: शतरंग प्रकाशन, एस-43 विकासदीप, स्टेशन रोड, लखनऊ-226001
मूल्यः ₹350/-
जब जुपिन्द्रजीत सिंह का कहानी-संग्रह ‘वो मिले फेसबुक पर’ मेरे हाथों में आया तो बस पढ़ता ही चला गया। उनकी कहानियाँ मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ती ही नहीं, बल्कि मस्तिष्क में अपने लिए एक कोना स्वयं ही तलाश कर जगह बना लेती हैं। साथ ही पाठक को सोचने पर विवश कर देती हैं और एक सामाजिक संदेश उन कहानियों में होता है। जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों को लेखक ने बहुत ही सलीक़े से तराशा है। उनके पात्र अपने इर्द-गिर्द के ही महसूस होते हैं। कहानी का शीर्षक ‘वो मिले फेसबुक पर’ अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है। आवरण पृष्ठ की साज-सज्जा आकर्षक है। मानवीय संवेदनाओं और पुष्प को चित्रित करता आवरण पृष्ठ कहानी-संग्रह के बारे में बड़ी ख़ामोशी से बहुत कुछ कह जाता है, बस हमें ध्यान से देखने की ज़रूरत भर है उसे।
जुपिन्द्रजीत सिंह का यह कहानी-संग्रह ‘वो मिले फेसबुक पर’ अपने आप में एक अद्भुत रचना है। जिस समाज में आज झूठ का ज़्यादा बोलबाला है, उस समाज में लेखक ने सच का दीया हाथ में लेकर समाज को एक नई दिशा दिखाने का सफल प्रयास किया है। 36 कहानी रूपी पंखुड़ियों में सिमटा ‘वो मिले फेसबुक पर’ अपनी ख़ुश्बू से पाठकों को महकाता है ही, साथ ही वेदना को बख़ूबी बयाँ कर जाता है। 192 पृष्ठों का कहानी-संग्रह अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कहने में पूरी तरह सफल है। पहली कहानी ‘एक छोटी सी प्रेम कथा’ एक मर्मस्पर्शी कहानी है। यह प्रगतिशील सोच का प्रतिनिधित्व करती है। कहानी ‘विस्थापित’ दिल को छू जाती है, विकास के नाम पर मनुष्य ही नहीं अपितु वृक्षों पक्षियों के विस्थापन के दर्द का अहसास होता है।
कहानी ‘बस शान्ति बची रहे’, ‘नियंत्रण रेखा पर शतरंज’ सहित कहानी-संग्रह की समस्त कहानियाँ बेहद ख़ूबसूरत और संदेश देने वाली हैं। लेखक ने कहानियों के माध्यम से समाज की सोच में बदलाव लाने का प्रयास किया है, वह प्रशंसनीय है। कहानी-संग्रह ‘वो मिले फेसबुक पर’ की भाषा सरल तो है ही, वाक्यों की रचना भी काफ़ी सशक्त है, जो अपनी बात कहने का पूरा दमख़म रखते हैं।
मस्तिष्क के प्रत्येक खाँचे में जुपिन्द्रजीत सिंह जी की एक-एक कहानी इस प्रकार समा जाती है, जैसा कि उस पात्र को अपने आस-पास या बिल्कुल क़रीब से देखा हो, यह उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है। अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कहानी-संग्रह ‘वो मिले फेसबुक पर’ पाठको को एक बार अपनी ‘सोच’ को सोचने को विवश ज़रूर करेगा।
समीक्षक: सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर. बिल्डिंग,
विधानसभा मार्ग, लखनऊ-228001
मो.: 9415508695
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