सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ के काव्य का समग्र रूप
समीक्षा | पुस्तक चर्चा सुरेन्द्र अग्निहोत्री15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
पुस्तक: ‘सुदामा पाण्डेय‘धूमिल’के काव्य में सामाजिक यथार्थ’ (शोध प्रबंध)
रचनाकार: डॉ. जगदीश चंद्र पंत
प्रकाशकः अविचल प्रकाशन, हल्द्वानी (उत्तराखंड)
मूल्य: ₹500.00
सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’के काव्य में सामाजिक यथार्थ पुस्तक में राग और आग के कवि ‘धूमिल’ के काव्य पर डॉ. जगदीश चंद्र पंत ने सरल और सहज भाव से संवेदनशील रूप में विश्लेषण प्रस्तुत किया है। नव प्रगतिशील चेतना में अपने समकालीन कवियों से विलग सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ अपनी कविता में कवि कह उठता है:
“उसकी आँखों में
चमकता हुआ भाईचारा किसी भी रोज़ तुम्हारे चेहरे की हरियाली को
बेमुरब्बत चाट सकता है।”
निःसंदेह ‘धूमिल’ की कविताएँ आग उगलती हैं, किन्तु लोगों का घर जलाने के लिए नहीं; ताकि हर रोज़ घर की रसोई में भोजन बन सके। धूमिल की कविताएँ आक्रोश से भर देती हैं, किन्तु देशद्रोही बनाने के लिए नहीं, ताकि लोग देशप्रेम का वास्तविक अर्थ समझ सकें। “धूमिल की कविताएँ प्रहार करती हैं, किन्तु रक्तपात करने के लिए नहीं, ताकि लोग अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करना सीखें।” धूमिल की तरह उनकी कविताएँ आज भी सजग प्रहरी की तरह लोगों की सुषुप्त चेतना को झकझोरकर जाग्रत करती हुई कह रही हैं—जागो, संकीर्ण मान्यताओं और परम्पराओं को तोड़कर मुक्ति की नई राह बनाओ; ताकि भावी पीढ़ियाँ उन पर चलकर शोषण, अन्याय-अत्याचार हेतु समाज में तनावमुक्त होकर, जीवन यापन कर सकें। आजीविका की तलाश में भटकते हुए जब उन्होंने मज़दूरों के प्रति पूँजीपतियों का जो व्यवहार देखा, उससे वह इतने आहत हुए कि दलित, मलिन, तिरस्कृत और अभावग्रस्त वर्ग की आवाज़ बन गए:
“हर तरफ़ कुआँ है
हर तरफ़ खाई है
यहाँ, सिर्फ़, वह आदमी, देश के क़रीब हैं
जो या तो मूर्ख हैं
या फिर ग़रीब हैं।”
सरलता, स्पष्टवादिता, सत्यवादिता, संवेदनशीलता आदि गुण जो एक आकर्षक व्यक्तित्व की विशेषताएँ मानी जाती हैं, वह ‘धूमिल’ में थीं; किन्तु लोगों के प्रति लोगों के अमानवीय व्यवहार को देखकर वह इतनी बार आहत हुए कि कुछ न कर पाने की विवशता से उनका मन क्षुब्धता से भर गया। आक्रोशित होकर जब-तब, जहाँ-तहाँ शब्द बाणों से लोगों को बेधने लगे। सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ के काव्य का सब कुछ समेटना, किसी भी शोध प्रबंध, लेखक के लिए आसान नहीं था लेकिन डॉ. जगदीश चंद्र पंत ने समग्र रूप में एक विलक्षण मौलिक पहचान दी है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
विधान सभा मार्ग; लखनऊ
मो.: 9415508695
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