बेबसी
शायरी | नज़्म सुरेन्द्र अग्निहोत्री15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
एक बात ज़ेहन में अक्सर कौध जाती है दोस्त
कुछ हम दोनों ने कभी मिलकर साथ किया नहीं
मोहब्बत से चंद पल को जिया नहीं
याद आती है तो ज़हर बन कर गले से उतर जाती है
एक मुक़ाम तक अजनबियों की तरह जीते रहे हम
अपनी अना की दुश्वरियों को कब छोड़ पाते रहे हम
अपने अपने सलीब ढोते राह ए ज़िन्दगी पे चलते रहे
अपनी अपनी जीत भी एक मायने में हार रही
ख़ुशफ़हमी का तक़ाज़ा होता रहा ख़ुदफ़रेबी बेकार रही
बस कश्मकश में ग़रज़ की रस्म निभाते जा रहे हैं
और अपनी बाहमी रंजिश पे मुस्कुराते जा रहे हैं
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