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दर्पण नाट्य संस्था ने अपनी स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 10 दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह

 

उत्तर प्रदेश कि सांस्कृतिक राजधानी में लखनऊ प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति जी द्वारा सन्‌ 1961 में स्थापित दर्पण नाट्य संस्था ने अपनी स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 10 दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह ऐतिहासिक झलक दिखाने में सफल रहा। ग़ौरतलब है कि दर्पण की हीरक जयंती के साथ लखनऊ इकाई दर्पण के भी रंगकर्म के 50 वर्ष पूरे होना उत्सव को और अधिक यादगार बना गया। ग़ैर पेशेवर, ग़ैरव्यावसायिक आधार पर सतत रंगकर्म करके अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करने में दर्पण नाट्य संस्था सफल रही है। सभी प्रतिष्ठित रंग महोत्सवों, समारोहों एवं रंग आयोजनों में नाट्य कर्म कर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का गौरव मिला है। दस दिवसीय नाट्य समारोह में मुंबई और दिल्ली की चर्चित, बॉलीवुड से जुड़े अभिनेताओं की पेशेवर रंग संस्थाओं ने अपने नाटकों का प्रदर्शन के साथ पहली बार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली की रंगटोली ने अपने चार नाटकों का प्रदर्शन, ग़ैर सरकारी संस्था दर्पण के लिए, उसके हीरक जयंती के अवसर पर किया। संस्कृति विभाग भारत सरकार, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, भारतेंदु नाट्य अकादमी के संयुक्त तत्त्वावधान में इस भव्य राष्ट्रीय नाट्य समारोह लखनऊ के रंगमंच के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा और इसे चिर स्मरणीय बना दिया। समारोह में रंगकर्म के साथ रंग चिंतन पर वाल्मीकि रंगशाला, संगीत नाटक अकादमी गोमतीनगर में रंगमंच अस्तित्व, संघर्ष और सरोकार विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी की अध्यक्षता पद्मश्री राज बिसारिया ने की, गोष्ठी में वरिष्ठ रंगकर्मी श्री गोपाल सिन्हा, श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, श्री राकेश जी, श्री अशोक बनर्जी जी ने विचार व्यक्त किये। गोष्ठी का संयोजन एवं संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया द्वारा किया गया। अध्यक्ष पद्मश्री राज बिसारिया जी ने कहा कि रंगमंच के अस्तित्व, संघर्ष और सरोकारों की बात करने से पहले हमें रंगमंच के कलाकारों की योग्यता की चिंता करनी चाहिए। वे रंगमंच को किस रूप में ले रहे हैं। वे रंगमंच में क्यों आ रहे हैं। उनका रंगमंच में आने का मन्तव्य क्या है। जब तक रंगकर्मियों और दर्शकों के मन में, संस्कारों में, रंगमंच एक ज़रूरत के रूप में जन्म नहीं लेगा तब तक अस्तित्व संघर्ष और सरोकारों के सवाल बने रहेंगे। रंगचिन्तन में लखनऊ शहर के अन्य वरिष्ठ तथा नवोदित रंगकर्मियों ने भी भागीदारी की। 60 वर्षों की रंग यात्रा को छाया चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया। दर्पण हीरक जयंती राष्ट्रीय नाट्य समारोह का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक विशिष्ट अतिथि संस्कृति राज्य मंत्री श्री जयवीर सिंह ने किया। उप मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि जीवन भी एक नाटक ही है। हम सब की ज़िम्मेदारी है कि अपनी बेस्ट पर्फ़ारमेंस दें। पात्र छोटा या बड़ा नहीं होता, बड़ी होती है पर्फ़ारमेंस। दस दिवसीय दर्पण हीरक जयंती राष्ट्रीय नाट्य समारोह का प्रति दिन दर्पण की दिवंगत शख़्सियतों को समर्पित किया गया। 

नाट्य समारोह में पूर्व प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति जी की स्मृति में दर्पण से जुड़ी हस्तियों को उप मुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक द्वारा प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति सम्मान से सम्मानित भी किया गया। प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति सम्मान, दर्पण लखनऊ के वर्तमान अध्यक्ष श्री विद्यासागर गुप्ता जी को उनके 1973 से लगातार निर्विवाद अध्यक्ष के रूप 50 वर्ष पूरे करने पर दिया गया। संस्थापक सदस्यों में पटकथाकार श्री राम गोविन्द अभिनेता श्री बिमल बनर्जी, को प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति सम्मान से सम्मानित किया गया। नाट्य लेखक डॉ. बृजेश चन्द्र गुप्ता, अभिनेता श्री विजय वास्तव और श्री विजय बनर्जी को भी ये सम्मान उनके योगदान हेतु दिया गया। स्मारिका का विमोचन भी किया गया। 

दस दिवसीय दर्पण हीरक जयंती राष्ट्रीय नाट्य समारोह कि शुरूआत दर्पण लखनऊ के नए नाटक स्वाहा से हुई। नाटक के लेखक निर्देशक श्री शुभदीप राहा प्राध्यापक भारतेंदु नाट्य अकादमी थे। नाटक स्वाहा का कथानक सन्‌ 1971 के युद्ध (पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश) की पृष्ठभूमि से उपजी एक प्लेटोनिक प्रेम कथा से जुड़ा हुआ था जिसमें बहुत गहरा लगाव, निःस्वार्थ भाव, अटूट विश्वास, समझदारी, संवेदनशीलता है। साथ ही अपने काम के प्रति समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा भी। ये एक सस्पेंस नाटक था जिसके अंत ने दर्शकों को चकित कर दिया। 

दूसरे दिन द फ़िल्म्स एंड थिएटर सोसाइटी, मुंबई की नृत्य संगीत मनोरंजन से भरपूर नाटक “प्रेम रामायण” का मंचन हुआ। रामायण पर अपने व्यापक शोध से, जाने-माने थिएटर लेखक, निर्देशक और निर्माता अतुल सत्य कौशिक ने प्रेम रामायण को लिखा भी और निर्देशित भी किया। 

समारोह की तीसरी संध्या को नाटक बालीगंज 1990 का मंचन हुआ। मुख्य रूप से इस द्विपत्रीय नाटक के मुख्य अभिनेता अनूप सोनी और निवेदिता भट्टाचार्य थे। जो कि बॉलीवुड के जाने-पहचाने चेहरे हैं। हालाँकि एक छोटी सी भूमिका में अमन वाजपेयी भी थे। भव्य कोठी का सेट और पल-पल उत्सुकता बढ़ाता बालीगंज 1990 एक थ्रिलर प्ले है और कहानी कलकत्ता के एक प्रसिद्ध स्थान बालीगंज की है। द फ़िल्म्स एंड थिएटर सोसाइटी, मुंबई की इस प्रस्तुति के लेखक-निर्देशक भी अतुल सत्य कौशिक ही थे। 

चौथी शाम फ़िल्म और रंगमंच की जानी मानी अभिनेत्री, जूही बब्बर सोनी के एकल अभिनय नाटक “विद लव आपकी सैयारा” से सजी थी। एकजुट टैलेंट फ़ोरम मुंबई के इस नाटक को जूही बब्बर सोनी ने ही अपनी माँ नादिरा ज़हीर बब्बर द्वारा रचित एक चरित्र के इर्द-गिर्द लिखा है, नाटक “विद लव, आप की सैयारा” आधुनिक भारतीय महिलाओं की विभिन्न पहचानों का प्रतिनिधित्व करता है। सैयारा एक सर्वाइवर, एक फ़ाइटर, एक अचीवर है। वह दिल से सरल, एक कुशल व्यवसायी और भय, सामाजिक बाधाओं, साहस और कई अन्य साँचों के बीच झूलती हुई एक लेखिका भी हैं। जूही ने 90 मिनट के इस नाटक में अपने एकल अभिनय से दर्शकों को बाँधे रखा। 

पाँचवीं शाम ग़ालिब के नाम रही। डॉ. एम सईद आलम द्वारा लिखित और निर्देशित, पिय्रोट ट्रूप, नई दिल्ली की हास्य प्रस्तुति “ग़ालिब इन न्यू डेल्ही” में ग़ालिब आधुनिक दिल्ली में जायज़ा लेने आते हैं। यहाँ भाषा कि दुर्गति देख परेशान हो जाते हैं। अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं का मज़ाक़ बनते देख स्वयं भी उसी वातावरण में ढल से गए। छटी संध्या दर्पण गोरखपुर ने असग़र वजाहत लिखित अपने नवीनतम नाटक “महाबली” का मंचन, भारतेंदु नाट्य अकादमी से प्रशिक्षित मनोज शर्मा के निर्देशन में किया। नाटक “महाबली” महाकवि तुलसीदास के इर्द-गिर्द रचा गया। तुलसीदास जी ने समकालीन संस्कृत के विद्वानों के तमाम व्यवधानों और विरोधों का सामना करते हुए आम लोगों की ज़ुबान ‘अवधी’ में राम कथा लिखी और एक विचार के लोकतंत्रीकरण का बीड़ा उठाया। 

दर्पण हीरक जयंती राष्ट्रीय नाट्य समारोह की अगली चार शामें तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली की रिपर्टरी (रंगटोली) के नाम आरक्षित रही। रा.ना.वि. द्वारा लगातार चार नाटकों का मंचन भी लखनऊ में पहली बार ही हुआ। पद्मश्री रामगोपाल जी के निर्देशन में धर्मवीर भारती के कालजयी नाटक “अंधायुग” का मंचन 24 मई को हुआ। अंधायुग संपूर्ण मानवीय संकट का नाटक है, जिसे बख़ूबी संप्रेषित किया गया। रा.ना.वि. रंगमंडल का दूसरा नाटक महाश्वेता देवी की कहानी ‘शयेन’ था। ये नाटक मानव जीवन के विभिन्न रंग और सामाजिक आर्थिक विषमताओं से भरे मानवीय अधिकारों से वंचित अंधविश्वासों में जकड़े समाज के निचले स्तर पर रह रहे लोगों से परिचय करवाता है रामगोपाल बजाज जी द्वारा निर्देशित नाटक “लैला मजनूँ” का मंचन हुआ। काव्यात्मक शैली का नाटक लैला मजनूँ, परंपरागत क़िस्से से अलग हट कर एक बहुस्तरीय अर्थ और नए आयाम के साथ प्रस्तुत किया गया लैला मजनूँ के जो क़िस्से नौटंकी या लोक कथाओं के माध्यम से देखे सुने जाते रहे, बजाज साहब का ये नाटक उससे एकदम हट कर था। लैला मजनूँ का प्रेम, आत्मा से आत्मा का प्रेम था या आत्मा का देह से प्रेम। एक तरह का इल्यूजन है इसमें। ऐसे सवालात रहे इस नाटक में था। समारोह का अंतिम दिन था और नाटक प्रस्तुति थी “माई री मैं कासे कहूँ।” विजय दान देथा की कहानी दुविधा का नाट्य रूपांतरण, रा.ना.वि. रंगटोली में शामिल अभिनेता लेखक अजय कुमार ने ही किया दर्शकों की भारी संख्या को देखते हुए नाटक के एक दिन में तीन शो रखे गए। इतिहासकार ऑस्कर ब्रॉकेट और फ्रैंकलिन हल्डी के अनुसार, अनुष्ठानों में आमतौर पर ऐसे तत्त्व शामिल होते हैं जो मनोरंजन करते हैं या आनंद देते हैं, जैसे वेशभूषा और मुखौटे के साथ-साथ कुशल कलाकार। 

—सुरेन्द्र अग्निहोत्री

दर्पण नाट्य संस्था ने अपनी स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 10 दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह

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