नई सुबह
काव्य साहित्य | कविता विवेक कुमार ‘विवेक’1 Jun 2024 (अंक: 254, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
सुबह, पहले शुरू हुई कुछ
बारिश के संग आँधी,
फिर आई घनघोर गरजती
टिप टिप बूँदा बाँदी,
चाचा भागा अंदर
मंगलू धोबी बाहर लपका,
गाय उठकर खड़ी हो गई
जबरन दौड़ी भीतर,
धूप में सूखे कपड़े हो गए चौड़म-चौड़ा
सारे मंगलू कैसे पकड़े
इधर-उधर उड़ते फिरते सारे सूखे कपड़े,
राजमिस्त्री ने रख दी
फ़ौरन टाट गारे पर,
टूटी फूटी खाट को लेकर
मंगलू धोबी अंदर भागे,
बंद कर दिया चाची ने खिड़की और दरवाज़ा,
बिजली के डर के मारे चाचा पलंग के नीचे जा भागे,
‘सुबह से पहले’ शुरू हुई है
बूँदा बाँदी के संग आँधी।
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