माँ की याद
काव्य साहित्य | कविता विवेक कुमार ‘विवेक’1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मेरे कान सुनने को
माँ तरस रहे हैं, कुछ तो बोलो ना!
देख तेरा लाल खड़ा द्वार पे
माँ तुम मुझे सहलाओ ना!
अपने इन मीठे हाथों से रात्रि का भोज खिलाओ ना
मीठी-मीठी लोरी गाकर मुझे तुम सुलाओ ना!
माँ मैं थका हार कर आया हूँ
मेरे पीठ थपथपाओ ना!
इस दुनिया में झूठ बोलने से
माँ मुझे तुम बचाओ ना!
अपना लाल समझ के माँ,
अपने पल्लू में छुपाओ ना!
माँ तुम व्हाट्सएप पर
मुझसे घंटे घंटे बातें करती थी
माँ तुम मुझसे कुछ दिन से बात ना करे
यह मुझे बहुत प्रताड़ित करता है।
मुझसे क्या ग़लती हो गई?
माँ तुम मुझे बताओ ना!
माँ तुम इतनी मौन क्यों हो?
इसका कारण बताओ ना!
अपने इन हाथों से मुझे तुम सहलाओ ना
माँ मुझे क्या ग़लती हो गई मुझे तुम बताओ ना!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं