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नव संवत्सर हिन्दू नव वर्ष चैत्र मास

जब मौसम में सर्वत्र बदलाव आ रहा हो हमारे घरों में गेहूॅं चना, सरसों, तिल मूॅंगफली अरहर की नई नई फ़सल आ रही हो तब ज़रूर हर किसान हर इंसान के मन का मयूर ख़ुशी में झूम उठता है।

आज का दिन, यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि के उत्पत्ति का दिन माना जाता है। 

घर में माता का आगमन जन जन को ख़ुशियों से भर देता है। 

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नव वर्ष प्रतिपदा कहते हैं। 

हिन्दू शास्त्र के अनुसार शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष का आरम्भ माना जाता है। 

माना जाता है कि इसी दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की संरचना आरंभ की थी जिसमें सात दिन लगे थे, उस दिन चैत शुदी एक दिवस रविवार था। 

चैत्र प्रतिपदा को निस्कुंभ योग में भगवान विष्णु जी का मत्स्यावतार भी हुआ था ऐसी मान्यता है। 

वहीं महान सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के संवत्सर की भी यहीं से शुरूआत माना गयी है। 

इसलिए इस तिथि को पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। 

इस समय शुभ संयोग के साथ ही जहाँ हर व्यक्ति हर्षित पुलकित और ख़ुश नज़र आता है वहीं प्रकृति भी नव-नव फूल नव कोंपलों से सुशोभित हो कर मानो धरा भी हरित बसन ओढ़ कर इठलाती है। 

जहाँ आम की मंजारिया अपनी सुगंध से वातावरण को सुवासित करती है वहीं महुआ के सुगन्ध से माहौल मादक हो जाता है। कोयल की कुहू कुहू पपिहा की पिहू पीहू हर नव विहाहिता के हृदय में पिया मिलन कि आस जगा जाती है। 

सबके हृदय में मधुर-मधुर भाव जाग्रत करती हुई प्रकृति भी लहलहा जाती है। भौंरे तितलियाँ भी मदमस्त हो वसन्त ऋतु का आनन्द भरपूर लेते हैं। 

वातावरण में एक नया उल्लास होता है जो हर व्यक्ति के मन को आह्लादित कर देता है। 

परम पुरुष और प्रकृति का मिलन भी चैत्र मास में ही हुआ था इसलिए सृष्टि रोम-रोम सुवासित हो कर महक उठती है। स्वयं श्री राम का अवतार भी चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को हुआ था। 

आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन हुई थी। 

निर्मल और कोमल वातावरण में ना ज़्यादा शीत ना ज़्यादा ग्रीष्म ना बारिश ना ज़्यादा धूप धरा आसमान सर्वत्र पूर्णतया शुद्ध। 

पावन मधुमास सर्वत्र आंनद बरसाती प्रकृति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है, सर्वत्र कोयल की स्वर लहरी मन को सहज ही प्रमुदित कर जाता। 

प्रकृति की पूजा करती सुहागिनें मस्ती में झूमती महिलाएँ खेतो में गेहूँ की बालियों को काटती आपस में एक दूजे संग हँसी ठिठोली करती सखियाँ। 

सहज ही मन को मोह लेता है ये चैत्र मास मधुमास। 

और हम अपने हिन्दू धर्म के अनुसार हर्सोल्लास के साथ हमारा नव वर्ष संवत्सर मनाते है। 

बेशक आज हम पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते हुए 31 दिसंबर को नव वर्ष मनाने लगे हैं, लेकिन हमारा नव वर्ष तो चैत्र प्रतिपदा से ही आरंभ होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू वर्ष की प्रथम तिथि है। इस वर्ष 13 अप्रैल को यह तिथि पड़ रही है और इस दिन हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत्‌ 2078 को नव वर्ष प्रारम्भ हो रहा जिसे मनाया जाएगा। 

शास्त्रों के अनुसार कुल 60 संवत्सर होते हैं। 

संवत्सर के प्रथम भाग को ब्रह्म विंसती कहते हैं और अंतिम भाग को शिव विंसती कहते हैं। हिन्दू नव वर्ष का प्रत्येक वर्ष अलग-अलग नामों से जाना जाता है। 

चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से चैत्र नवरात्रि का आरंभ होता है, माता का आगमन सबके घरों में नए अन्न का आना पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ इस पावन दिन को और भी पावन मंगल कर जाता है। 

नवसंवत्सर 2078 के साथ ही देश में माॅंगलिक कार्य का शुभारंभ होना और घरों में शादी-ब्याह, मुंडन, जनेऊ इत्यादि शुभ कार्य का शुभारंभ हो जाता है। इस वर्ष नव वर्ष का शुभारंभ अद्भुत संयोग से शुरू हो रहा। जिसे दुर्लभ शुभ योग कहा जा रहा है। 

मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश

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