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पूजनीय हैं वृक्ष हमारे

हरे  वृक्ष   की   करते  कटाई ।
हरियाली  का  शोषण  करते।
वृक्ष  हैं  धरती   के  आभूषण।
अरे  मूर्ख  मनु  क्यूॅं  न  डरते?
 
भारी   भारी  मशीनों  से  तुम।
हरे   भरे   पेड़ों   को   काटते।
धरती माॅं  के  कोमल तन पर।
बेरहमी   से   वार  हो   करते।
 
रिश्ते   नाते    तुम   भूल   चुके। 
जिस  धरती को  माॅं  कहते  हो।
उन्हीं का शील हरण करते तुम।
प्रकृति  का   दोहन  करते  तुम।
 
कंक्रीट   का    शहर   बसाया।
ऊॅंचे  पर्वत  पर  रस्ता  बनाया।
तोड़   दिया  सीना   पर्वत  का।
बुलडोज़र  उस  पर  चलवाया।
 
कितनी   सुंदर  ये  प्रकृति थी,
सदा  चहकती  बुलबुल  जैसी।
लहलहाती   फूलों  की   वादी,
धानी   चुनर  ओढ़   इठलाती।
 
प्रदूषण   के   विष   का  तूने।
मैला  पर्दा   टाॅंग   दिया   है।
धुॅंधली   हो  गई सारी  रौनक़।
धुआँ  धुआँ  आकाश  हुआ है।
 
नदियाॅं  भी   प्रदूषित  हो  गईं।
कूड़े करकट  से दूषित हो गईं।
मत कर तू खिलवाड़ प्रकृति से।
इसका   तांडव  सह न सकेगा।
 
बिन  जल  जीवन  कैसे संभव?
बिना‌   वायु   कैसे   हो  जीवन?
वन जॅंगल  नदियाॅं  प्रकृति सब,
इक दिन लुप्त  हों जाएँगी जब।
 
अगर    रुके    चेते  ना  सँभले।
विलुप्त प्रकृति हो  जायेगी  तब।
विकृत  होगा   दृश्य   धरा  का।
प्रकृति तस्वीरों में नज़र आएगी।

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