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नारी है सृजनहारी

नारी ही अद्भुत सृजन है उपहार है भगवान की। 
नारी जग सृजन करती सृजनकार है जहान की। 
 
नारी को भी हक़ है अपने मन की व्यथा सुनाने का। 
ख़ुद अपना आकाश चुने ख़ुद अपना स्वप्न सजाने का। 
 
नारी जग की जननी है मत नारी का अपमान करें। 
बेटी है सिर्फ़ इसी वजह से, भ्रूण में ना हम जान हरें। 
 
बेटी है तो नारी है सबका अपना‌ भाग्य होता। 
नारी ने ही तो नर जाया, फिर क्यूँ बेटी पर तू रोता? 
 
नारी ही प्यार बहन का है नारी ही परम पुनीता है। 
नारी गंगा त्रिवेणी की, पावन सलिला शुचि गीता है। 
 
पुरुष प्रधान जगत में नारी ने वो सब कर दिखलाया। 
हर क्षेत्र में पहुँच बनाई है, हर क्षेत्र में परचम लहराया। 
 
कोई भी क्षेत्र नहीं ऐसा जहाँ नारी पहुँच नहीं पाई। 
दो कुल का मान सँभाले ही अपना अस्तित्व बना पाई। 
 
सूर्योदय से रात तलक निज ज़िम्मेदारी ख़ूब निभाती। 
जैसा साँचा मिलता उसको उसमें ही वो ढल जाती। 
 
निज व्यक्तिव की माटी से नित रूप सलोना गढ़ती है। 
नारी ही सृजनकारी है दुख सकल जगत का हरती है। 
 
वो मोम सरीखे होती है लेकिन अबला कमज़ोर नहीं। 
परिवार की धुरी कहलाती, दिन रात सदा वो चलती है। 
 
परिवार राष्ट्र की उन्नति हेतु निज संस्कृति की रक्षा हेतु। 
सहर्ष समर्पित कर देती समिधा बन कर जल जाती है। 
 
प्रतिमान सृजन के नित नव नव निज हाथो से गढ़ती है। 
परिस्थितियों की अग्नि में कुंदन सा तप जब ढलती है। 
 
नारी जननी है पुरुषों की तुम मान सदा इनका करना। 
हर रूप में है अस्तित्व परम हर क़दम पे तुम रक्षा करना। 

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