माॅं तो माॅं है
काव्य साहित्य | कविता मणि बेन द्विवेदी15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
याद आ कर के माॅं की रुलाने लगी।
माॅं ख़यालों में फ़िर आज आने लगी।
नींद आँखों से मेरी बहुत दूर थी।
लोरी माॅं की मैं फिर गुनगुनाने लगी।
माॅं ने चलना सिखाया सही राह पर।
क्या है अच्छा बुरा माॅं बताने लगी।
मुझको मुद्दत हुई माॅं से बिछड़े हुए।
बेसबब याद माॅं की सताने लगी।
माॅं की सेवा में ख़ुद को लगा देना तुम।
माॅं की कृपा ही शोहरत बढ़ाने लगी।
मान देना सदा माॅं को अपनी सुनो।
माॅं तो माॅं है ख़ुशी का खज़ाना लगी।
जब भी जीवन में कट के पल आ गए
आ के ख़्वाबों में ढाढ़स बँधाने लगी।
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