पालक
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता हरजीत सिंह ’तुकतुक’15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
हमारे ऑफ़िस का,
सबसे तेज़ वाहन चालक।
पिज़्ज़ा पास्ता खाने वाला बालक।
हमने देखा,
घर से डिब्बा ला रहा है।
पिछले पाँच दिन से पालक खा रहा है।
हमने पूछा,
क्या हुआ मेरे क्रिस गेल।
क्यों रवि शास्त्री की तरह रहा है खेल।
वो बोला,
हो गयी है शादी।
पर आप इतने अचरज में क्यों भा जी।
आपको भी तो बुलाया था।
और सारा रायता,
आप ही ने तो फैलाया था।
हमने कहा,
बालक, तेरा तात्पर्य, हमें समझ नहीं आया।
तब उसने हमें समझाया।
वो बोला,
आपने ही,
शुरू किया था बवाल।
जब मेरी बीवी को कहा था।
कि बालक का रखना ख़याल।
वो रख रही है।
इतना तो मुझे मेरी माँ ने नहीं सताया।
मुँह सूँघ कर चेक करती है,
कि पिज़्ज़ा तो नहीं खाया।
हमने कहा,
निरीह बालक,
पर रोज़ पालक।
वो बोला,
पिछले हफ़्ते उसने कहा था।
थोड़ा धनिया ले आना।
मैं धनिये की,
ले गया पाँच पत्ती।
उसने लगा दी मेरी बत्ती।
कहने लगी,
धिक्कार है तुम्हारी सोच पर।
बेकार तुम्हारी जवानी है।
धनिये से,
सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करनी है।
चटनी बनानी है।
मैंने डिसाइड किया।
कि ग़लती नहीं दोहराऊँगा।
थोड़ा बोलेगी तो भी ज़्यादा लाऊँगा।
पिछले हफ़्ते,
उसने मँगाई थी पालक।
पाँच किलो ले आया आपका बालक।
बस उसी जुर्म की सज़ा पा रहा है।
पिछले पाँच दिन से,
सुबह शाम पालक खा रहा है।
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