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तिरंगा 

सात साल का, छोटा बच्चा, 
बिना शर्ट के, फटी पैंट में, 
ज़ोर ज़ोर से, चीख चीख के, 
बेच रहा था, एक तिरंगा। 
 
मुझ से बोला, ले लो बाबू, 
इस से सस्ता, नहीं मिलेगा, 
कहीं मिलेगा, सच कहता हूँ, 
एक रुपए में, एक तिरंगा। 
 
रफ़ कॉपी के इक पन्ने पर, 
हरा रंग था एक तरफ़। 
और एक तरफ़, 
केसरिया था। 
 
उन दोनों के बीच में बहता, 
श्वेत रंग का दरिया था। 
चक्र था मानो नियत कर रहा, 
दूरी उनके बीच की। 
 
इक डंडी से जोड़ के उनको, 
तस्वीर देश की खींच दी। 
 
पत्नी बोली, 
मिस्टर ढपोरशंख, 
वो सब तो ठीक है। 
पर झंडा ख़रीदा या नहीं। 
 
हमने कहा, देवी बात यह नहीं है। 
कि हमने झंडा ख़रीदा या नहीं। 
बात यह है, कि यह बात, 
ग़लत है या सही। 
 
हम अपने भविष्य की ट्रेनिंग, 
ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। 
हम बचपन से ही उसे, 
तिरंगा बेचना सिखा रहे हैं। 

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