सबकी सुनना, अपनी करना
शायरी | ग़ज़ल हस्तीमल ‘हस्ती’8 Jan 2019
सबकी सुनना, अपनी करना
प्रेम नगर से जब भी गुज़रना
अनगिन बूँदों में कुछको ही
आता है फूलों पे ठहरना
बरसों याद रखे ये मौजे
दरिया से यूँ पार उतरना
फूलों का अंदाज़ सिमटना
खुशबू का अंदाज़ बिखरना
गिरना भी है बहना भी है
जीवन भी है कैसा झरना
अपनी मंज़िल ध्यान में रखकर
दुनिया की राहों से गुज़रना
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ग़ज़ल
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- सिर्फ ख़यालों में न रहा कर
- हँसती गाती तबीयत रखिये
- हम ले के अपना माल जो मेले में आ गए
- हर कोई कह रहा है दीवाना मुझे
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