टूट जाने तलक गिरा मुझको
शायरी | ग़ज़ल हस्तीमल ‘हस्ती’8 Jan 2019
टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी ख़ुशबू भी मर न जाये कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
घर मेरे हाथ बाँध देता है
वरना मैदां में देखना मुझको
अक़्ल कोई सज़ा है या इनआम
बारहा सोचना पड़ा मुझको
हुस्न क्या चंद रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
देख भगवे लिबास का जादू
सब समझतें हैं पारसा मुझको
कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको
मेरी ताकत न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको
ज़िंदगी से नहीं निभा पाया
बस यही एक ग़म रहा मुझको
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ग़ज़ल
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