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सीमा की सीमा 

 

अजेयगढ़ कृषि विश्वविद्यालय का मुख्य सभागार खचाखच भरा था। मुख्य अतिथि प्रदेश के कृषि मंत्री थे जो स्वयं एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक भी थे। मंच में उनके साथ विश्वविद्यालय के उप कुलपति, वनस्पति और कृषि विभाग के मुख्य वैज्ञानिक तथा शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। शहर के नामी-गिरामी समाचार पत्रों के पत्रकार कार्यक्रम पर पैनी नज़र रखे हुए थे। तीन दिन की कृषि गोष्ठी और रंगारंग कार्यक्रम के साथ कृषि पुरस्कारों का वितरण भी होना था। कार्यक्रम सुचारु रूप से चल रहा था। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम संचालक ने पुरस्कारों की उद्घोषणा की, “इस साल का ‘ईनोवेटिव अर्बन एग्रीकल्चर अवॉर्ड’ मिलता है श्रीमती सीमा कुमार को। श्रीमती कुमार को बहुत-बहुत बधाई और मैं मंत्री जी से अनुरोध करता हूँ कि वे हमारे विजताओं को इनाम राशि और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित करें।” सीमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूँज उठा। सीमा पुरस्कार लेने मंच की ओर बढ़ी। अपनी कुर्सी से मंच तक की दूरी तय करते हुए पिछले कई वर्षों के घटनाक्रम यकायक किसी फ़िल्म की तरह ऊसकी आँखों के सामने आ गए। 

पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर सीमा एक स्वाभिमानी और महत्वाकांक्षी महिला थी। देश के प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थान से बी टेक की डिग्री लेने के बाद उसने बीस सालों तक बड़ी कम्पनियों में प्रतिष्ठित पदों पर काम किया। जन्म से उसकी आँखों में ‘रेटिनाइटिस पिगमेन्टोसा’ नाम की एक बीमारी थी। ‘रेटिनाइटिस पिगमेन्टोसा’ या आर पी आँखों की आनुवंशिक बीमारी है जो आँखों के रेटिना को प्रभावित करती है। रेटिना का मुख्य कार्य प्रकाशग्राही (फोटोरिसेप्टर) कोशिकाओं द्वारा एकत्रित जानकारी को संसाधित करके उनको मस्तिष्क को भेजना है ताकि वह यह तय करें कि तस्वीर क्या है। रेटिना के छड़ और शंकु प्रकाशग्राही (फोटोरिसेप्टर) कोशिकाओं के प्रगतिशील नुक़्सान के कारण रोगी आमतौर पर किशोरावस्था में रात की दृष्टि, युवा वयस्कता में पार्श्व दृष्टि और बाद के जीवन में केंद्रीय दृष्टि खो देते हैं। आर पी का अभी तक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई ठोस इलाज उपलब्ध नहीं है। 

चालीस की आयु तक सीमा को कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई। वह अपना घर, परिवार और दफ़्तर सब आराम से चला रही थी, हाँ अँधेरा होते ही उसको दिखाई कम देता था, लेकिन इससे उसके जीवन में कोई ख़ास बाधा नहीं आई। आयु के बढ़ने के साथ उसकी बीमारी बढ़ने लगी और पैंतालीस पार करने के बाद उसको तेज़ धूप में भी ठीक से दिखाई नहीं देता था। किताब पढ़ने में भी परेशानी महसूस होती। उसकी आँखों के सामने हमेशा बादल जैसे छाए रहते। सबसे ज़्यादा परेशानी सीढ़ियाँ उतरने में होती थी। उसकी दोनों आँखों में मोतियाबिंद आ गया था। मोतियाबिंद तो ऑपरेशन से ठीक हो गया लेकिन धीरे-धीरे ऊसकी पार्श्व दृष्टि जाती रही अब सिर्फ़ केंद्रीय दृष्टि काम करती थी। घर का काम तो वह किसी तरह सँभाल लेती किन्तु दफ़्तर, बाज़ार वह अकेले नहीं जा सकती थी। उसको कोई सहायता की ज़रूरत होती थी। उसका आत्मविश्वास कम हो चुका था, वह भीड़ देखकर घबरा जाती। अब उसके पास घर की चारदीवारी में रहने के अलावा और दूसरा विकल्प नहीं था। हालाँकि उसके बच्चे और पति क़दम-क़दम पर उसका साथ देते थे, पर सीमा को लगता कि वह उन पर बोझ बनती जा रही है। लोगों के ताने और ख़ुद की कमी से वह ज़िन्दगी में घुटन महसूस करने लगी। इस स्थिति से उबरने के लिए सीमा ने पेड़-पौधों से दोस्ती कर ली। उसने अपनी छत में गमले लाकर ख़ूब सारे पौधे उगा लिए। वैसे बाग़वानी का शौक़ तो उसको बचपन से था, लेकिन अब शौक़ के साथ यह उसकी मजबूरी भी थी। उसने बाग़वानी की कुछ किताबें ख़रीदीं, छोटे अक्षर पढ़ पाना उसके लिए थोड़ा मुश्किल हो गया था तो उसने कंप्यूटर में कृषि के लेख पढ़ कर अपना ज्ञान बढ़ाया और खेती ने नए तरीक़े सीखे। किस फ़सल के लिए कैसी मिट्टी चाहिए, कितना खाद, कितना पानी और हर वह चीज़ जो खेती के लिए ज़रूरी हो। सुबह होते ही वह सबसे पहले अपने बग़ीचे में जाती। 

शाम के पाँच बजते ही सीमा का मन छत में जाने को छटपटाने लगता, वह अपने आप को रोक ही नहीं पाती। बारह सौ वर्ग फ़ुट की छोटी सी छत में उसने अपनी एक अलग दुनिया बना ली थी। यहाँ वह सबसे ज़्यादा ख़ुश रहती। वह पेड़ पौधों से बात करती, उनकी निराई-गुड़ाई करती, समय-समय पर कीटनाशक और कवकनाशक घोल का छिड़काव करती और नित्य समय से पानी देती। इन सब कार्यकलापों में सीमा को बहुत आनंद आता। वह अपने दुख-दर्द सब भूल जाती। छत में उसने छोटे–बड़े हर साइज़ के गमले रखे थे। बड़े गमलों में उसने नीबू, चीकू, अमरूद और पपीता की छोटी प्रजाति के पौधे तथा ड्रैगन फ़्रूट, स्ट्रॉबेरी, रसभरी उगाए थे। अब वह सब्ज़ियाँ बाज़ार से नहीं ख़रीदती थी घर पर ही ताज़ी भिंडी, बैंगन, टमाटर, लौकी, तोरई, कद्दू, गाजर और सरसों और चौलाई उगाती और कभी अपने पास-पड़ौस में भी बाँटती। उसकी बग़िया हमेशा गेंदा, गुलाब, गुड़हल, मधुमालती और मौसमी फूलों से महकती रहती। इसके अलावा कड़ी पत्ता, पुदीना, धनिया, अजवाइन, ऐलोवेरा, और मनी प्लांट सालभर बग़ीचे को हरा भरा रखते। 

एक दिन इसी तरह वह शाम को अपने बग़ीचे में पौधों की सिंचाई कर रही थी तो उसने घर के सामने कार के रुकने की आवाज़ सुनी। जिज्ञासावश वह नीचे आई तो उसने देखा एक सरकारी गाड़ी उसके घर के सामने खड़ी है। उसने गेट खोला तो कार से कुछ लोग बाहर आए। उन्होंने सीमा से पूछा, “क्या यह सीमा जी का घर है?” उसने हाँ में उत्तर दिया। फिर एक साहब बोले, “मैं राजवीर शर्मा और यह मेरी टीम है। हम इस क्षेत्र के हॉर्टिकल्चर विभाग से आए हैं, हम लोग सीमा जी से मिलना चाहते हैं।” 

सीमा ने कहा, “जी मैं ही सीमा हूँ। कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ?” 

राजवीर शर्मा बोले, “अभी कुछ दिन पहले हमने सोशल मीडिया पर आपका एक वीडियो देखा था जिसमें आपने गमलों में बहुत सारे फल फूल और सब्ज़ियाँ उगाई हुई हैं। दरअसल हमारे विभाग ने अर्बन ऐग्रिकल्चर को बढ़ावा देने के लिए एक नया अभियान शुरू किया है। हम लोग हर शहर में ऐसे ही लोगों की खोज में हैं जिन्होंने अपने घर के आस-पास की छोटी-छोटी जगह जैसे बालकनी, छत का सदुपयोग किया हो और वातावरण को सुंदर और स्वच्छ बनाया हो। इसके लिए हम सोशल मीडिया का सहारा भी ले रहे हैं और अकस्मात्‌ दौरे पर जाकर लोगों के बग़ीचों का निरीक्षण करते हैं और अगर बग़ीचा हमारे मानक पर खरा उतरता है तो हमारा विभाग उनको बग़ीचे के विस्तार और सौंदर्यीकरण के लिए सरकारी सहायता प्रदान करते हैं। हमारा उद्देश्य अर्बन ऐग्रिकल्चर को बढ़ावा देना तथा शहरों को कृषि के लिए आत्मनिर्भर बनाना है। साथ ही हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि शहरी लोगों को सक्रिय और स्वस्थ जीवन जीने के लिए पर्याप्त उच्च गुणवत्ता वाले भोजन की नियमित पहुँच हो। अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो हम लोग आपका बग़ीचा देखना चाहेंगे।”

पहले तो सीमा थोड़ा डर गयी और बग़ीचा दिखाने में आनाकानी करने लगी, फिर उन लोगों ने अपना पहचान पत्र और सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना के काग़ज़ात दिखाये तो वह आश्वस्त हो गयी और उनको अपने बग़ीचे में ले गयी। बग़ीचा बहुत ही सुन्दर था, भूसुदर्शनिकरण (लैंडस्केपिंग), गमलों का वितरण, विन्यास, साइज़ सभी मन को मोहने वाले थे। बग़ीचे के प्रवेश द्वार पर मधुमालती स्वागत के लिए आतुर थी। वे सभी लोग सीमा के बग़ीचे को देखकर बहुत प्रभवित हुए। सीमा ने उनको बताया कि किस तरह वह जैविक खाद बनाती है और उसी खाद का उपयोग अपने बग़ीचे में करती है। दाल, चावल, सब्ज़ी को धोने वाले पानी को अपने बग़ीचे में प्रयोग करती है। बग़ीचे का पूरा निरीक्षण करने के बाद श्री राजवीर शर्मा बोले, “सीमा जी पहले तो इस सुन्दर और आकर्षक बग़ीचे के लिए आपको बहुत बधाई। आपने छोटी-सी छत को शानदार बनाने के साथ साथ जल संरक्षण पर भी ध्यान दिया है, हम सभी को आपका बग़ीचा बहुत पसंद आया। हम आपके बाग़वानी के शौक़ और लगन से बहुत प्रभावित हुए हैं। अगर आप चाहें तो हमारा विभाग आपकी छत पर एक पॉलीहाऊस का निर्माण करेगा, जिससे आप मौसमी फल, फूल और सब्ज़ियों के साथ बेमौसमी फ़सलें भी आसानी से उगा सकती हैं। आप आसपास के लोगों के लिए एक प्रेरणा बनेंगी। पॉलीहाऊस निर्माण का सारा ख़र्च सरकार वहन करेगी, इसके अलावा हम आपको कुछ मौसमी और बेमौसमी सब्ज़ी और फूलों के बीज, खाद और जैविक खाद बनाने के लिए एक किट भी देंगे।”

सीमा तो जैसे सातवें आसमान में पहुँच गई, यह उसके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। ख़ैर सीमा को सारी बातें समझा कर वे लोग चले गए। दूसरे दिन शाम को फिर से वही लोग आए उनके साथ एक ट्रक भी था, जिसमें पॉलीहाउस की निर्माण सामग्री थी। दो दिन में उसकी छत में एक छोटा सा पॉलीहाउस बन कर तैयार हो गया, सीमा की ख़ुशी की कोई सीमा ही नहीं थी। फिर सीमा ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, उसने पॉलीहाउस में हर सम्भव फ़सल उगाई। उसने पत्तियों में लगने वाले कीड़े पत्ती सुरंगक (लीफ़ माइनर) को नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावशाली जैविक कीटनाशक भी तैयार किया। इस ऊपलब्धि के लिए सीमा का बहुत सराहा गया। लीफ़माइनर की समस्या लगभग हर फ़सल में होती है। यह एक ऐसा कीट हैं जिसके लारवा पत्तियों के अंदर रहते हैं, तथा पत्तियों की अंदरूनी कोशिकाओं का सेवन करते हैं। पत्तियों की बाहरी सतह पर सफ़ेद रंग की अनेक सुरंगें बन जाती हैं। ये सुरंग नुमा संकीर्ण रेखाएँ पत्ती के प्रकाश सन्सलेषण में बाधा पहुँचाती हैं, साथ ही किसान को आर्थिक नुक़्सान भी सहना पड़ता है। 

अब सीमा अपना ज़्यादा समय पॉलीहाउस में ही बिताती, कुछ नये प्रयोग करती रहती। अपने निरंतर प्रयोगों और प्रयासों से सीमा ने टमाटर की एक ऐसी प्रजाति विकसित की जो गमलों में ज़मीन से ज़्यादा पैदावार देती थी और उसमें विटामिन सी की मात्रा सामान्य से पाँच प्रतिशत ज़्यादा थी। यह बात स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई जिससे सीमा को बहुत प्रसिद्धि मिली। उसको कॉलेज में होने वाली कृषि गोष्ठियों से आमंत्रण आने लगे। हालाँकि वह अपनी आँखों की समस्या की वजह से गोष्ठियों में जाने से बचती थी। उसका पॉलीहाउस देखने स्कूल, कॉलेज के बच्चे आते। शहर में होने वाली हर छोटी-बड़ी उद्यान प्रदर्शनी में सीमा को कोई न कोई पुरस्कार मिलता ही मिलता। और आज . . . आज तो उसे कृषि का सर्वोच्च पुरस्कार मिल रहा था वो भी प्रदेश के कृषि मंत्री द्वारा! 

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