मुहावरे वाली रचना
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता डॉ. नीरू भट्ट15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
दिनभर मधुमक्खियों की तरह व्यस्त रहती हूँ
घर आते ही पति पूछते हैं
“दिनभर घर में करती क्या हो?"
रोज़ रोज़ के तानो से तंग आकर
एक दिन मैंने भी कह दिया
“दिनभर मगरमच्छ की तरह पड़ी रहती हूँ”
पति भी हाज़िर जवाब, तपाक से बोले
“तभी में सोचूँ घर अजायबघर क्यों लगता है?"
यह सुनते ही मेरा ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया
मेने सन सत्तावन की तलवार निकाली
और कहा “देखो जी
तुम घर को अजायबघर कहो या चिड़ियाघर
लेकिन मछली बाज़ार मत बनाओ।
और हाँ . . . एक बात मेरी हमेशा गाँठ बाँध कर रखना
पानी में रहते हो तो मगर से बैर मत करना॥"
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