टमाटरों की हड़ताल
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता डॉ. नीरू भट्ट15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
अनिश्चितकाल के लिये हुई 'टमाटरों की हड़ताल'
वृद्ध लाल टमाटर ने इस तरह बयां किया हाल।
मुद्दा यह है कि हम फल हैं या फिर सब्ज़ी
आज तक तय नहीं हो पायी हमारी श्रेणी।
कभी हमें सब्ज़ी कहा जाता और कभी फल
इन्सान असमंजस में रहते नहीं निकालते हल।
ना हमको फलों जैसा मान सम्मान मिलता है
ना ही फिर सब्ज़ियाँ जैसा आरक्षण मिलता है।
दुनिया भर के वैज्ञानिक हर साल गोष्ठियाँ करते
'सुपर फ़ूड' का तमगा देते, लेख प्रकाशित करते।
अब और नहीं सहेंगे हम अपना हक़ लेकर रहेंगे
फल या फिर हैं हम सब्ज़ी तय करवा कर रहेंगे।
आने वाली पीढ़ियों को ख़ुद पर हँसने नहीं देंगे।
अपना बलिदान देकर उनका मार्ग प्रशस्त करेंगे।
ना घेराव, ना तोड़ फोड़ ना ही पथराव करेंगे
शान्तिपूर्वक ही हम अपना आन्दोलन करेंगे।
सब्ज़ी मण्डी में हों, या हों रसोई की टोकरी में
कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित या फिर हों लॉरी में।
जो जहाँ है वहीं अपना आक्रोश प्रदर्शित करेगा
वहीं सड़कर अपना सर्वोच्च बलिदान करेगा।
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