धरती माँ
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. नीरू भट्ट1 Apr 2019
सूरज का आना हर किसी को है लुभाता,
उसके आते ही अँधेरा फुर्र से भाग जाता
सूरज सच में है अपनी जगह पर अटल
पृथ्वी से ही तो दिखती सब चहल पहल
वास्तव में त्याग का पर्याय है धरती
चक्कर लगाती पर कभी नही है थकती
अगर रात में सूरज न दिखे, धरा नहीं है ज़िम्मेदार
वह तो निष्ठा से अपना काम कर रही है लगातार
उसको तो हर हाल में अपना धर्म है निभाना
पश्चिमी देशों को भी तो सूरज दर्शन है कराना
छोटे-बड़े अमीर-ग़रीब में भेद वह नहीं है करती
इसीलिए तो सभी कहते हैं सबकी माँ है धरती
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