शाम की कविता
काव्य साहित्य | कविता राजेंद्र ‘राज’ खरे1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
सूर्यास्त की अंतिम किरण
विश्वास की अंतिम तरंग
पंखुरियाँ अवसादमयी
आशा के अंतिम पुष्प में
दूरियों के विस्तार परे
निश्चित बिंदु पर
पथ-बंधु नहीं, तुम क्यों नहीं?
मात्र उतरते अन्धकार में
एक पक्षी की चीत्कार
तथा, कुछ हिलती परछाईं
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