युद्ध और परिंदे
काव्य साहित्य | कविता फाल्गुनी रॉय1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
युद्ध काल में
धमाकों से ज़मींदोज़ होती इमारतों
और भीषण बमबारी के बीच
मुझे आश्चर्य होता है
आख़िर कहाँ पनाह लेते हैं परिंदे
क्या वे उड़ जाते हैं जंगलों की ओर
छोड़ देते हैं शहर
या फँस कर रह जाते है
धुएँ और धूलों की गुबार में
धमाकों से तोड़ते हुए अपने दम
क्योंकि युद्ध में
गिरते हुए
बमों से बचने के लिए
परिंदों के पास नहीं होता कोई बंकर
न आती है उनके लिए कोई एम्बुलेंस
और न गिने जाते हैं उनके मृत शरीर।
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