तुम्हारे साथ, तुम्हारे बिन
काव्य साहित्य | कविता फाल्गुनी रॉय1 Sep 2019
तुम्हारे साथ-
जैसे वैशाख की तपती धूप में
उतर आता हो बसंत,
जूही महकती है
सारी रात
तुम्हारे साथ
तुम्हारे बिन-
जैसे धरती सूखी पड़ी हो भरे
भाद्र में
गुमसुम हो दूधिया चाँदनी शरद की
और कोहरे में डूबे हो चैत्र के दिन
तुम्हारे बिन
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