दुनियाँ में ईमान धरम को ढोना मुश्किल है
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक24 Feb 2008
दुनियाँ में ईमान धरम को ढोना मुश्किल है।
सब मुमकिन है मगर आदमी होना मुश्किल है॥
दिन तो रोज़ी रोटी के चक्कर में बीत गया।
मगर रात कल की चिंता में सोना मुश्किल है॥
दुश्मन से तो चाहे जैसे कभी निपट लेंगे।
अपनों के तानों के आगे रोना मुश्किल है॥
है कुछ ऐसे लोग जिन्हें सारी सुविधाएँ हैं।
कुछ घर में बच्चों को एक खिलौना मुश्किल है॥
आसमान एहसान करें तो सब कुछ होता है।
मगर आज के मौसम में कुछ बोना मुश्किल है॥
अपने घर में सबने अपने कमरे वोट लिये।
थकी उमर के लिये ज़रा सा कोना मुश्किल है॥
नाम किसी का लेकर मेहन्दी रची हथेली में।
अब उसके मिलने के पहले धोना मुश्किल है॥
दुनियाँ को ठोकर मारो तो दुनियाँ साथ चले।
मुझे नहीं लगता कि कुछ भी होना मुश्किल है॥
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Suresh sangwan 2019/04/05 02:37 PM
वाह वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , जितनी तारीफ़ की जाए कम है बेहद ख़ूबसूरत मतले के साथ ये पेशकश लाज़वाब है ढेरों दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें