अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दुनियाँ में ईमान धरम को ढोना मुश्किल है

दुनियाँ में ईमान धरम को ढोना मुश्किल है।
सब मुमकिन है मगर आदमी होना मुश्किल है॥


दिन तो रोज़ी रोटी के चक्कर में बीत गया।
मगर रात कल की चिंता में सोना मुश्किल है॥


दुश्मन से तो चाहे जैसे कभी निपट लेंगे।
अपनों के तानों के आगे रोना मुश्किल है॥


है कुछ ऐसे लोग जिन्हें सारी सुविधाएँ हैं।
कुछ घर में बच्चों को एक खिलौना मुश्किल है॥


आसमान एहसान करें तो सब कुछ होता है।
मगर आज के मौसम में कुछ बोना मुश्किल है॥


अपने घर में सबने अपने कमरे वोट लिये।
थकी उमर के लिये ज़रा सा कोना मुश्किल है॥


नाम किसी का लेकर मेहन्दी रची हथेली में।
अब उसके मिलने के पहले धोना मुश्किल है॥


दुनियाँ को ठोकर मारो तो दुनियाँ साथ चले।
मुझे नहीं लगता कि कुछ भी होना मुश्किल है॥

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

 कहने लगे बच्चे कि
|

हम सोचते ही रह गये और दिन गुज़र गए। जो भी…

 तू न अमृत का पियाला दे हमें
|

तू न अमृत का पियाला दे हमें सिर्फ़ रोटी का…

 मिलने जुलने का इक बहाना हो
|

 मिलने जुलने का इक बहाना हो बरफ़ पिघले…

टिप्पणियाँ

Suresh sangwan 2019/04/05 02:37 PM

वाह वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , जितनी तारीफ़ की जाए कम है बेहद ख़ूबसूरत मतले के साथ ये पेशकश लाज़वाब है ढेरों दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल

गीतिका

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं