कितना
काव्य साहित्य | कविता इन्दु जैन13 Jul 2008
(कुछ न कुछ टकराएगा ज़रूर)
प्रेषक : रेखा सेठी
कितना वक़्त लेगी वह
ग़लती जानने में
फिर कितना मानने में?
और और कितना
अपने हाथ से अपना ही दूसरा थामने में?
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