देख
काव्य साहित्य | कविता इन्दु जैन13 Jul 2008
(सबूत क्यों चाहिए)
प्रेषक : रेखा सेठी
देख गिलहरी किस फ़ुर्ती से
पेड़ पर चढ़ी है
अनार कुतरने
तू कैसे नीचे खड़ी है
गिरे दाने ओकती?
जंगल में रहने वालों के
हाथ-पाँव मज़बूत होते हैं
तू शहर को घर मान
सहमी पड़ी है
किताबें तेरा अस्त्र हैं
दिमाग़ शस्त्र
अपनी फौज कैसे भूल गई
कैसे भूल गई तू क़द में
पेड़ से हमेशा बड़ी है!
एक स्कूल छूट गया
दूसरा खुला है
छूट छूट...
क्यों इस तरह
धनुष पर खिंचे बाण-सी
चढ़ी है?
यह लड़ाई नहीं
बीज का धर्म है
सूरज की गर्मी से
चाँद तारों हवाओं से
किसलिए इस क़दर डरी है
ज़रा देख तो
गिलहरी किस फुर्ती से
पेड़ पर चढ़ी है!
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