मैं ही रही मैं
काव्य साहित्य | कविता इन्दु जैन13 Jul 2008
(सबूत क्यों चाहिए)
प्रेषक : रेखा सेठी
चिड़िया जब बोलती है
पुकारती है
मैंने कहा – गाती है
चिड़िया ने नहीं......
उँची डाल पर बैठी
हिल रही चिड़िया
गर्दन घुमाती
मैंने कहा – झूलती है
चिड़िया ने नहीं......
दाना कहाँ है?
उँची उड़ान भर रही चिड़िया
देख रही खिड़की से मैं
मैंने कहा – आज़ाद है चिड़िया
चिड़िया ने नहीं......
नहीं देखा मैंने
पीछा करता अदृश्य।
वही देखा मैंने
जो दिखाया मेरी सीमा ने
उसका घोंसला
उसके बच्चे
और कभी
ज़मीन पर फूटे अंडे-
नहीं पाई मैं उसकी बोली
पंखों की थकी ककहरी।
अपने साथ रुलाती गाती रही उसे
मैं ही रही मैं
नहीं बनी चिड़िया
और न चिड़िया बनी मैं।
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