महाकाल
काव्य साहित्य | कविता राजीव डोगरा ’विमल’1 Mar 2020
काल हूँ महाकाल हूँ
अनंत का विस्तार।
रुद्र का भी अवतार
भाव से करता
भक्तों को भव पार हूँ।
न दिखे सत्य तो
संपूर्ण संसार का
करता विनाश हूँ।
काली का महाकाल हूँ
विष्णु का आराध्य
मैं विश्वनाथ हूँ।
मैं स्थिर हूँ
अस्थिर भी हूँ
इसीलिए सदाशिव हूँ।
देवों का भी देव हूँ
इसीलिए मैं महादेव हूँ।
आदि हूँ, अनादि हूँ
अनंत हूँ, अपार हूँ।
अव्यय हूँ, अव्यग्र हूँ
तभी तो जगद्व्यापी
मैं सदाशिव हूँ।
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