नये पत्ते डाल पर आने लगे
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक30 Apr 2007
नये पत्ते डाल पर आने लगे।
फिर परिंदे लौटकर गाने लगे॥
जो अंधेरे की तरह डसते रहे।
अब उजाले की कसम खाने लगे॥
चंद मुर्दे बैठकर श्मशान में।
ज़िंदगी का अर्थ समझाने लगे॥
उनकी ऐनक टूटकर नीचे गिरी।
दूर तक के लोग पहिचाने लगे॥
जब सियासत का नया नक्शा बना।
थे जो अंधे लोग चिल्लाने लगे॥
आईनों की साफ गोई देखकर।
सामने जाने से कतराने लगे॥
जब सच्चाई निर्वसन होने लगी।
लोग उसको वस्त्र पहनाने लगे॥
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गीतिका
कविता
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