क़लम, काग़ज़, स्याही और तुम
काव्य साहित्य | कविता हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’15 Jun 2019
उकेर लूँ, काग़ज़ पर,
जो तू आए,
ख़्वाबों में ए ख़्याल ।
बस...
क़लम, काग़ज़, स्याही...
और तुम,
मैं बह जाऊँ... भावों में,
अहा!
जो तू आये...
भाव...
रचना की आत्मा से मिल,
बुन आयें, पश्मीनी...
ख़्वाबों का स्वेटर,
ओढ़ता फिरूँ जिसे,
दर्द की सर्द सहर में,
जो दे जाए सर्द में गरमाहट...
दर्द में राहत,
अहा!
क़लम, काग़ज़, स्याही और तुम
जो तू आए,
ख़्वाबों में ए ख़्याल ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}