मोहताज़ साँसें
काव्य साहित्य | कविता हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
पल-पल की.. मोहताज़ साँसें,
धीरे-धीरे झुर्रियों से.. ढ़लता जिस्म,
हर रोज़...
बेहिसाब सा... बढ़ता अहम,
रिश्तों की कड़वाहट।
आख़िर किस लिये???
बस इसीलिये....
कि इक पल आये मौत,
लपेटे स्याह रात,
बोझिल दिन,
और छीन ले...
सारा गुरुर,
सारा अंहकार,
मोहताज़ साँसें और जिस्म।
सब कुछ।
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