कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
काव्य साहित्य | कविता हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’13 Apr 2017
कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
मुझे तो दिन में सौ–सौ बार होता है।
हर सुबह जब एक हाथ में अख़बार,
दूसरे में कॉफी का मग लिए,
बैठा होता हूँ बालकनी में अपनी,
लबों को छूते उस मीठे–कड़वे,
कहवे के हर घूँट से मुझे इश्क़ होता है,
कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
दफ़्तर को जाते हुये जब
बस के छूट जाने का अनबुझ डर,
मिट जाता है कानों को लगती कर्कश धुन से,
कानों को चुभते उस बेसुर से,
सुर से मुझे इश्क़ होता है।
कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
बस की अगली सीट पर,
माँ की गोद में बिलखता - रोता बचपन,
जब अचानक हँसने लगता है मेरे बहलने से,
मुझे उस हँसते-रोते बचपन से इश्क़ होता है।
कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
दोपहर की भूख जब
जकड़ लेती है आग़ोश में अपने,
क़ैद से मुझे निकालते,
माँ के डिब्बे में बंद उस
प्यार से, मुझे इश्क़ होता है।
कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
शाम की हवा के स्पर्श से,
और माँ के हाथों की नरमी से,
मिलते उस राहत- ए-दर्द से मुझे इश्क होता है।
कौन कहता है इश्क़ इक बार होता है?
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