ख़ुदकुशी
काव्य साहित्य | कविता हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’16 Jan 2018
थकहार दुखों से एक दिन,
सोचा जीवन का कर दूँ त्याग।
चल पड़ा कूदने, इक उक्त मापसे,
मन में लिये कई करुण राग॥
घूम! काल भर पहुँच गया. . . फिर एक,
पुल के पास मैं,
लहरों से छलित. . . हो रहा था जहाँ,
यह मन विशालमय,
जहाँ पवन मन्द करती थी. . . हृदय प्रघात भी,
था वाहनों का शोर, और मन आघात भी॥
भर दोहरी साँस, कर दृढ़ प्रण,
जो मूँदे चक्षु , अगले ही क्षण।
कूदने को मैं था तैयार,
किन्तु फिर आड़े आ गया, वह माँ का प्यार।
एक प्रतिबिम्ब. . . एक मधुर वाक्य ने,
मेरे अस्तित्व ने, ममता के वाच्य ने।
भरे ज़ख़्म सारे, हरे दुख तमाम।
किया ज़िन्दगी को फिर.. मेरे नाम।
किया ज़िन्दगी को फिर .. मेरे नाम।
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