उसी को कुछ कहते अपना बुतखाना है
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक3 Jul 2007
सुनता कोई नहीं सभी का अपना गाना है
हमको अपनी सभी गुत्थियाँ खुद सुलझाना हैं
सारी राहें जाम सभी दरवाजों पर ताले
समय किसी के पास नहीं है एक बहाना है
राशन की दुकान बिना सामान चला करती
इन बीते वर्षों में हमने इतना जाना है
सबके दिल में दर्द कोई हमदर्द नहीं मिलता
ऐसे में किसको अपना अब घाव दिखाना है
लोग जिसे कहते हैं मस्जिद बहुत पुरानी है
और उसी को कुछ कहते अपना बुतखाना है
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गीतिका
कविता
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