यह कैसी तबलीग़!
शायरी | नज़्म डॉ. राजेन्द्र वर्मा15 Apr 2020 (अंक: 154, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
चलो मैं मान लेता हूँ
आपको
समय नहीं मिला
मरकज़ से बाहर निकलने का
या
उद्घोषणा काफ़ी नहीं थी
आपके लिए
हाथ जोड़ कर
निवेदन करना चाहिए था !
अब
जब
आपको
अलहदा कर ही दिया
आपका
संगरोध हो ही गया
आप
पाए गए
संक्रमण से ग्रस्त
आप
इतर-तितर थूक क्यों रहे?
अल्लाह के बढ़े हाथ
जो
आपको बचाने के लिए उठ रहे
आप
उनको मरोड़ने पर क्यों आमादा?
खुदा के जो बन्दे
आपकी
सेवा में तत्पर
उन पर
क्यों बरस रहे डंडे ?
बहनों के सामने
नंग-धड़ंग!!!
यह कैसा ढंग?
यह कैसी तबलीग़!
यह कैसी तरक़ीब!
यह कैसा इलहाम!
इक्कीसवीं सदी में
ये कैसा ....... पैगाम!
सावधान!
............. सावधान!!
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कविता
नज़्म
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