ऐहतियात
काव्य साहित्य | कविता राजेन्द्र शर्मा1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
इन दिनों मेरे शहर की फ़ज़ाओं में
नफ़रत का तेज़ाब है
थोड़ा सँभलकर चलो
इन दिनों मेरे शहर का बाज़ार
अफ़वाहों से गुलज़ार है
थोड़ा सँभलकर चलो
इन दिनों मेरा शहर राजनीति की
शह-मात से परेशान है
थोड़ा सँभलकर चलो।
चुनावी संक्रमण के मौसम में
मेरे शहर का हाल-बेहाल है
थोड़ा सँभलकर चलो।
मैंने इस दौर में कई बार अपने ही
शहर को जलते देखा है
थोड़ा सँभलकर चलो
मैंने इस दौर में कई बार अपने ही
आपको मरते देखा है
थोड़ा सँभलकर चलो
मैंने इस दौर में कई बार इंसानों को
इश्तहार बनते देखा है
थोड़ा सँभलकर चलो।
चुनावी संक्रमण के मौसम में
मेरे शहर का हाल-बेहाल है
थोड़ा सँभलकर चलो॥
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