बड़ा सताये ठंडी का मौसम
काव्य साहित्य | कविता हरेन्द्र श्रीवास्तव1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
सुबह-शाम छाया है कुहरा
दिन छोटे रात हो रही बड़ी
बड़ा सताये ठंडी का मौसम
नहीं मिल रही है धूप कड़ी।
सन-सन बह रही शीत लहर
पाला पड़ गया है सारे गाँव
बड़ा सताये ठंडी का मौसम
नहीं सुहाती है पेड़ों की छाँव।
सूने पड़ गये खेत-खलिहान
जाने कहाँ खो गयी चिड़िया
बड़ा सताये ठंडी का मौसम
नहीं दिखती अब गिलहरियाँ।
थर-थर काँप रहा तन बदन
सारा दिन सोते तान रजाई
बड़ा सताये ठंडी का मौसम
कैसे हो अब पढ़ाई-लिखाई।
बाग़-बग़ीचों में जमी है ओस
मौसम अब नहीं रहा सुहाना
बड़ा सताये ठंडी का मौसम
नहीं भाता अब नदी नहाना।
हाथ-पाँव सब पड़ गये हैं सुन्न
लगने लगी अब ज़ोरों की ठंड
बड़ा सताये ठंडी का मौसम
खेल-कूद सारे हो गये हैं बंद।
अंदर भी ठंडी बाहर भी ठंड
कैसे खेलें कैसे पढ़ें हम सब
क्यूँ आया ये ठंडी का मौसम
बड़ा सताये ठंडी का मौसम।
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