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बेलन घाटी का सुरम्य करबालपुर-खम्हरिया गाँव

पाषाण युग की वह बेलन घाटी 
जहाँ मिले धान के प्रथम प्रमाण 
उसी ऐतिहासिक घाटी की गोद में 
बसा हुआ है अपना प्यारा सा गाँव। 
पाषाण सभ्यता की है यह भूमि 
यहाँ मिली मूर्तियाँ और मृदभाण्ड 
मानव संस्कृतियाँ यहाँ पर जन्मी
भारत की धरोहर है अपना गाँव। 
चहुं ओर सुशोभित खेत तरु बाग़ 
रहती यहाँ सदा प्रकृति की बहार 
हर मौसम यहाँ का होता मस्ताना 
बड़ा सुंदर सुरम्य है अपना गाँव। 
 
लपरी नदी यहाँ सदियों से बहती 
लम्बा सफ़र कर टोंस में मिलती
नदी तट पर हैं ऊँचे घने तरुवर
मानो कोई बहुत बड़ा सा जंगल 
अर्जुन जामुन कदम्ब गुलमोहर
मन को लगते हैं बड़े मनोहर
तरु पर रहते सुंदर रंगबिरंगे खग
पपीहे कोयल मैना और चातक
दिन-रात करते मधुर कोलाहल 
ग्रीष्म ऋतु में बहती शीतल बयार
जेठ बैशाख का जब आता माह
तरुवर तले मिलती है शीतल छाँव
बड़ा सुहाना लगता है अपना गाँव। 
 
दादर बहरा सींगवा साँतव
खेतों के यहाँ नाम निराले
बाग़ बग़ीचे पंछी उपवन
मन को करते हैं मतवाले। 
खेत किनारे तरुवर बबूल 
शोभित उन पर पीले फूल
डालियों पर बया के नीड़ 
लगते बड़े रम्य रमणीक। 
मण्ठवे यहाँ अद्भुत भूखंड 
प्रकृति यहाँ दिखाती अचरज
घटती यहाँ अजीब घटनाएँ 
बताते यहाँ के पुरखे पूर्वज। 
महुआ टपके आये मधुमास
सुर्ख़ रक्तरंग में दहके पलाश 
पीपल वट यहाँ युगों से पूजित 
वनदेवी करें नीम तरु वास। 
गाँव बीच है पुराना तालाब
घेरे इसे इमली और आम
पास बसा एक पावन स्थल
दिव्य चौरा माता का धाम। 
बड़ा सुन्दर है अपना ग्राम। 
 
बहता यहाँ स्वच्छ मदमस्त पवन
प्रदूषण मुक्त रहती वसुंधरा और गगन 
फूल फूल पर तितलियाँ मँडराती
बुलबुल कोयल मधुर गीत सुनाती
दूर-दूर तक फैली घासों की हरियाली
खेतों-मेड़ों पर चरती गायें-भैंसे मतवाली
सुबह-सुबह कलरव करते हैं मोर
बड़ी सुहानी लगती यहाँ की भोर
शीत ऋतु में आते सुंदर पक्षी खंजन
देख इन्हें पुलकित हो जाता तन-मन
बारिश में गिरगिट दौड़ लगाते डार-डार 
जाड़ों की रात हुआँ-हुआँ करते सियार 
बसंत ऋतु में खिलते सरसों के पुष्प 
मँडराते उन पर मधुमक्खियों के झुंड 
सुगंध बिखेरते यहाँ गेंदा और गुलाब
फलों से लदे रहते अमरूद और आम
बड़ा रमणीय बड़ा मनोहर है अपना ग्राम। 
 
बरई कुशवाहा कोइरी काछी
बसे यहाँ नाना जाति के वासी, 
कायस्थ ब्राह्मण हट्टे-कट्टे यदुवंशी 
रहते यहाँ वीर राजपूत रघुवंशी! 
बीच गाँव में कोलों की बस्ती 
आदिम जीवन अद्भुत संस्कृति। 
मछली मार नदी से लाते
भून-भूनकर जी-भर खाते। 
चैत्र नवरात्रि बहे पुरवाई 
कोलन के तब छावै ओझाई
आधी रात करें भूतहाई 
अवघड़-प्रेत की देवें दुहाई। 
पीते चीलम बजाते ढोल 
गीत ख़ुशी के गाते कोल। 
होली में यहाँ होती उमंग 
गाते फगुआ बजाते मृदंग 
चढ़े मदिरा मचे हुड़दंग 
फेंके गुलाल पीए सब भंग
पर्व मनाते मिलजुल सब संग। 
स्नेह-प्रेम की डोरी से बँधकर 
रहते यहाँ सब एकजुट होकर
छल कपट ना कोई बैर
एक-दूजे को ना समझे ग़ैर
कभी-कभी हो जाती तकरार 
मगर ना घटता आपस में प्यार 
सुख-दुःख हो या कोई विपदा 
एक दूजे का सब देते साथ 
बड़ा सलोना है अपना यह गाँव! 
 
बड़ी उर्वर उपजाऊ यहाँ की धरती 
होती यहाँ विविध फ़सलों की खेती 
यहाँ वसुंधरा को प्रिय वर्षा प्रिय धान
सदियों शताब्दियों से गाँव की पहचान 
जाड़ों में गेंहूँ की फ़सल लहलहाती 
छिमियों से लदी मटर खेतों में इठलाती, 
बसन्त में सरसों खिलती मुस्काती 
तरह-तरह के पौधे उगा मिट्टी इतराती! 
लू चले, पाला पड़े, आ जाये झंझावात 
अथक श्रम करते यहाँ कृषक दिन रात 
पकी फ़सल देख हर्षित होते किसान 
अन्न उगाकर अन्नदाता देते जीवनदान! 
पालक मूली गोभी की सुंदर क्यारी 
धनिया के फूलों से लगती है न्यारी 
हँसती-खिलखिलाती वसुंधरा सारी
झूम उठते पशु पंछी सब नर नारी! 
लुभाती है यहाँ दूब सरपत और कास 
मनभावन होती है यहाँ हर एक शाम 
रोमांचित लगते यहाँ खेत और खलिहान 
बड़ा सुंदर है बेलन घाटी का अपना गाँव! 


रचनाकार: हरेन्द्र श्रीवास्तव
पताः ग्राम भलुहा (करबालपुर खम्हरिया), उमरी, तहसील-कोरांव, ज़िला-प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

बेलन घाटी का सुरम्य करबालपुर-खम्हरिया गाँव

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