भारत
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
कोई हिन्द, तो कोई हिन्दोस्तां, तो कोई भारत कहता है,
ये वो नाम है जो हर एक के सीने में रहता है,
ये वो पावन देशभक्ति की अमृत गाथा है,
जो हर एक के दिल में गंगा की धारा सा बहता है (2)
कोई हिन्द, तो कोई हिन्दोस्तां, तो कोई भारत कहता है,
ये वो नाम है जो हर एक के सीने में रहता है,
वस्त्र तीन रंगों का नहीं, ये भारत की पहचान है,
ऊँचा गर्व से खड़ा हुआ ये देश की जान है,
ना समझो इसको तुम साधारण सा एक कपड़ा,
तीन रंगों में रँगा हुआ ये अपना हिंदुस्तान है (2)
कोई हिन्द, तो कोई हिन्दोस्तां, तो कोई भारत कहता है,
ये वो नाम है जो हर एक के सीने में रहता है,
यहाँ हर जाति, हर पन्थ, हर धर्म चमकता है,
सैकड़ों बोली और भाषा इस आँगन में चहकता है,
देख के हमको सारा विश्व यही सोचता रहता है,
कि कैसे इतनी अनेकता में भी, यहाँ पर एकता है (2)
कोई हिन्द, तो कोई हिन्दोस्तां, तो कोई भारत कहता है,
ये वो नाम है जो हर एक के सीने में रहता है।
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