ख़ालीपन
काव्य साहित्य | कविता जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’15 Jul 2024 (अंक: 257, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
बिना बात के ख़ालीपन,
भीतर है कुछ सूनापन,
बिना बात के ख़ालीपन॥
कुछ छूट गया, कुछ बिसर गए,
कुछ अपने–पराए बिछड़ गए,
रह–रह कर कसक करे है तन,
बिना बात के ख़ालीपन॥
जीवन भी सही, साथी भी सही,
रिश्ते-नाते घराती भी सही,
खाए जाये कुछ सूनापन,
बिना बात के ख़ालीपन॥
यार सही, प्यार सही है,
घरबार सही, परिवार सही है,
फिर क्यों लगता अकेलापन?
बिना बात के ख़ालीपन॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
किशोर साहित्य कविता
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं