कल जा टकराया बचपन से
काव्य साहित्य | कविता जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
जीवन की ज़िम्मेदारियों में भागता,
बढ़ी उमर में हाँफता-हाँफता,
जी रहा था अनमन से,
कल जा टकराया बचपन से,
भूल गया था हँसना–गाना,
भूल गया था मुस्कुराना,
देख उसे याद आ गया अंतर्मन से,
कल जा टकराया बचपन से॥
प्यारी सी वो गुड़िया रानी,
बातों में है सबकी नानी,
सब भाव बता दे नयनन से,
कल जा टकराया बचपन से॥
उसकी वो भाव–भंगिमा,
मासूम-सी सूरत, शरारती अखियाँ,
मुझे चिढ़ाये अखिंयन से,
कल जा टकराया बचपन से॥
उसकी तो मुस्कान प्यारी,
सारे जग के धन से न्यारी,
मुझको भाए वो मन से,
कल जा टकराया बचपन से॥
रूठना-मनाना है उसका काम,
प्यार जताने में है उसका नाम,
मन हर्षाये कण-कण से,
कल जा टकराया बचपन से॥
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