माँ
काव्य साहित्य | कविता जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
आँखें खोलीं हमने पहली बार,
दिखा जीवन का पहला प्यार,
तकलीफ़ों से हमें पाकर,
करती रही हमें दुलार।
कई रातें जाग हमें है सँभाला,
ख़ुद रही भूखी, दिया हमें निवाला,
भूल कर अपनी सुध-बुध तुम,
बड़े लाड़–प्यार से हमें है पाला।
जब चलना हमने शुरू किया,
माँ को शांत ना बैठने दिया,
घर उथल–पुथल करने पर भी,
बड़े प्यार से हमें शांत किया।
प्रथम मित्र बनके तुमने,
सही ग़लत की हमें शिक्षा दी,
ग़लती करने पर भी माँ,
माफ़ करने की नैतिकता दी।
माँ तुम करुणा की मूरत हो,
वात्सल्य प्रेम की सूरत हो,
ये दुनिया अधूरी तुम बिन है,
इस संसार की तुम ज़रूरत हो।
क्या बखान करूँ तेरी महिमा की,
जग में प्रेम का संचार किया,
हर जगह ईश्वर ना पहुँच सके,
इसीलिए माँ का आविष्कार किया।
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