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भारतीय संस्कृति के प्रहरी 

 

दुनिया में जहाँ कहीं भी भारतीय रहते हैं, अपने आपको भारतीय कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। वह सालों साल भारत की माटी को स्पर्श नहीं कर पाते, लेकिन उसके प्रति ममत्व, स्नेह, अपनापन, मोह वैसा का वैसा ही बना रहता है। आज पूरे विश्व में भारत की उन्नति का ध्वज फहराया जा रहा है। इस ध्वज को विश्व में मान सम्मान दिलाने में प्रवासी भारतीयों का भी बहुत योगदान रहा है और हमेशा रहेगा। मैं भी एक प्रवासी भारतीय हूँ। मैं भारत की बेटी, सूरीनाम की बहू व नीदरलैंड की निवासी हूँ। 

नीदरलैंड देश में भारतीय संस्कृति व हिन्दी भाषा की तेज़ी से पनपती बेल को जानने के लिए हमें थोड़ी सी जान-पहचान नीदरलैंड देश की मिट्टी से करनी होगी। 

नीदरलैंड यूरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है यह उत्तर पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसके दक्षिण में बेल्जियम और पूर्व में जर्मनी देश है नीदरलैंड दो शब्दों नीदर+लैंड नीदर = अर्थात्‌ नीचा +लैंड =अर्थात्‌ ज़मीन या भूमि से मिलकर बना है। अंग्रेज़ी भाषा में इसका शाब्दिक अनुवाद किया गया है, इसलिए इसे हॉलैंड भी कहा जाता है। नीदरलैंड समुद्र तल से एक मीटर नीचे बसा है। यहाँ डच भाषा बोली जाती हैं। 

दो तरह के प्रवासी 

नीदरलैंड में दो तरह के प्रवासी भारतीय रहते हैं जिनमें 2,50,000 भारतीय-सूरीनामी समूह के हैं दूसरे लगभग 45,000 वह प्रवासी है जो द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर अब तक उच्चशिक्षा, रोज़गार व अन्य कारणों से सीधे भारत से हवाई जहाज़ में बैठ कर यहाँ आये। प्रथम प्रवासी सूरीनामी भारतीय प्रवासी वह हैं जिन्हें सन्‌ 1872 ब्रिटिश व डच लोगों के आपसी समझौते से, सन्‌ 6 फ़रवरी को 1873-1916 के बीच भारत के विभिन्न अलग-अलग भागों से लगभग 35,000, लोगों को बिहार, जौनपुर बहराइच, बलिया दरभंगा, उड़ीसा व कलकत्ता से वहाँ की बंदरगाह से लालारूख जहाज़ में बैठा—“श्री राम के देश” ले जाने के नाम पर सूरीनाम, जो दक्षिण अमेरिका के महाद्वीप के उत्तर में स्थित एक देश है, वहाँ ले जाया गया। 25 नवंबर 1975 को सूरीनाम डच शासन से स्वतंत्र हो गया। बहुत से सूरीनामी भारतीय परिवार अपने उज्जवल भविष्य बनाने के सपनों व सम्मान के साथ अपना जीवन आरंभ करने नीदरलैंड प्रवास कर गये। इस तरह से नीदरलैंड इन प्रवासी भारतीयों का यह दूसरा प्रवास स्थल बना। 

अपनी जड़ों से जुड़ाव 

भारत की संस्कृति विश्व की प्रधान संस्कृति है, यह एक वास्तविकता है। भारतीय संस्कृति अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ अजर अमर है। अपने प्रथम प्रवास के समय इन प्रवासियों के लिए अपनी मूल जड़ों से नए स्थान, नई संस्कृति, भाषिक विविधताओं व असहनीय विषम परिस्थितियों में भारत से जाते समय अपने साथ, रामायण, महाभारत, गीता, कबीर व सूरदास की कुछ पुस्तकें, लोक गीत, लोक परम्पराएँ ले गये थे—वही इनकी शक्ति बना। अपने दूसरे यानी सूरीनाम से नीदरलैंड प्रवास के साथ ही उनकी सांस्कृतिक विरासत भी नीदरलैंड आ गई। सूरीनाम व भारत से आने वाले ज़्यादातर भारतीय ऐम्सटर्डम, रोटर्टेडम, देनहाग़ व कुछ यूतरैखत में बस गये। ऐम्सटर्डम व देनहाग़ में भारतीय बहुलता में थे इसलिए उन्होंने अपना एक सामाजिक संगठन बना, अपनी धार्मिक आस्था, त्योहारों व रीति-रिवाज़ों का विस्तार किया। 

शुरूआत में यह कार्य बहुत मुश्किल था तब यह लोग एक दूसरे के घरों में इकट्ठा हो, रामायण पाठ, दुर्गा पूजा, व अन्य उत्सवों का आयोजन करते थे किन्तु बाद में इस प्रवासी भारतीय समुदाय ने स्वयं धन एकत्र कर मंदिर का निर्माण किया। आज नीदरलैंड में छोटे-बड़े लगभग पचास सनातन, आर्यसामाज व एक बड़ा इस्कॉन मंदिर है। लगभग पाँच गुरुद्वारे हैं। भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों का विवरण सनातन धर्म में मिलता है जिसका अनुपालन यहाँ के प्रवासी भारतीय आज भी करते हैं। वह जब मिलते हैं तो हैलो या नमस्कार नहीं बल्कि राम-राम और जय सीता राम से संबोधित करते हैं। 

प्रवासी भारतीयों ने अपने सीनियर सिटिज़न केयर सेंटर खोले हुए हैं। मंदिरों में प्रार्थना, पूजा के अतिरिक्त स्वास्थ्य, बच्चों की परवरिश व भारत से आने वाले नये लोगों को नीदरलैंड के क़ानून से संबंधित जानकारी दी जाती है। 

नीदरलैंड में रजिस्टर्ड विवाह का क़ानून है इसलिए हम प्रवासी भारतीय अपनी भारतीय व नीदरलैंड परम्परा दोनों निभाते हैं। भारतीय परंपराओं में विवाह के सभी रीति-रिवाज़ उसी तरह से किये जाते हैं जैसे उस समय (1873-1915) तक भारत में किये जाते थे। विवाह का कार्ड जिसे “न्यौता” कहा जाता है, विवाह से एक महीने पहले. उस पर लवंग, अक्षत व हल्दी कुमकुम लगा कर बाँटा जाता है। विवाह की तैयारी के प्रथम दिन गोबर व जौ से सजा कर घर के भंडार घर में गणेश भगवान की मूर्ति के साथ कलश स्थापना की जाती है। फिर कुम्हार के चाक पूजन की विधि, जिसे स्थानीय भाषा में “मटकौडवा” कहते हैं, की जाती है। विवाह से दो दिन पहले हल्दी व तेल चढ़ाने की विधि की जाती है जिसे “तैलवान” कहा जाता है और विवाह के एक दिन पहले “भतवान” होता है जिसमें होने वाले दुलहन या दूल्हे का मामा उनके कपड़े, मिठाई लाता है व बुआ लावा भूजति है जिसे लावा भूजाई की रीत कहते हैं। इसी दिन रात को मेंहदी लगती है व घर की महिलाएँ पारम्परिक गीत गा कर हँसी ठिठोली करती हैं। विवाह के दिन वर व वधू को भगवान राम व सीता का अवतार मान जाता है। मंडप में जाने से पहले वधू से गौरी पूजा कराई जाती है, इमली का पत्ता खिलाया जाता है, जिसके पीछे यह मान्यता है कि अब तुम्हारे लिए मायका खट्टा हो गया और ससुराल मीठा है इसलिए तुम ससुराल में जा कर सिर्फ़ मिठास घोलना। 

मंडप में आने से पहले की “दुलहा” परछाये की रीत की जाती है जिसमें वर का स्वागत किया जाता है। यह रीत वधू की माँ, भाभी या बड़ी बहन करती है। मंडप में वर व वधू दोनों पक्ष के पंडित उपस्थित होकर विवाह संपन्न करवाते हैं। विवाह की रीति संपन्न होने के बाद वर पक्ष के पाँच लोगों को पंच परमेश्वर मान मंडप में ही बिठा कर भोजन कराया जाता है और पीतल का थाली, लोटा व कुछ धन दे उनका मान किया जाता है। विवाह में जो आकर्षण का केन्द्र बिन्दु होता है वह है “लौंडा का डाँस” इसमें एक पुरुष महिला के कपड़ों में लहँगा-चोली पहन पारंपरिक विवाह गीत पर (कभी-कभी अश्लील शब्दों का प्रयोग भी होता है) नाच करता है। विवाह के बाद परिवार के कुल देवी-देवताओं की पूजा व अन्य रीति रिवाज़ सम्पन्न किये जाते हैं। इसी तरह, गोद भराई, शिशु के जन्म लेने पर छटी पूजा, जनेऊ संस्कार, कर्ण भेद संस्कार, से लेकर अंतिम संस्कार व पितृ पक्ष तक सभी का पालन यहाँ देखने को मिल जाएगा। अधिकांश भारतीय घरों में लोग अपनी मातृभाषा में, भोजपुरी या सरनामी हिंदी में बात करते काका-काकी, फूफा-फुआ, नाना-नानी, बहनोई-नंदोई जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है घाम, मेध, माँड़ो (मंडप) बिहान (कल) मेहरारू, पतोहू, दुलहन, दुलहनियाँ, तुरई, भाटा (बैंगन), अंझूर (अंधेरा) हँसिया, करछुल बिरबा आदि शब्द बोल-चाल में हैं। 

हिन्दी भाषा के प्रति लगाव

भारतीय हिन्दी भाषा के लगभग पाँच प्राथमिक विद्यालय यहाँ हैं जिनमें लगभग बारह सौ बच्चे हिन्दी व संस्कृत भाषा की शिक्षा ग्रहण करते हैं। डॉ. मोहन कांत जो 1960में भारत से पढ़ने के लिए आये थे, बाद में यहीं नीदरलैंड के लाइदन शहर के विश्वविद्यालय में काफ़ी समय तक एंथ्रोपॉलोजिस्ट विषय के प्रोफ़ेसर रहे। नीदरलैंड में हिन्दी पढ़ाने का प्रथम प्रयास उन्हीं के द्वारा स्थापित संस्थान “मिलन” से आरंभ किया गया। बाद में उन्होंने अपने अन्य पाँच सूरीनाम भारतीय मित्रों के साथ मिल कर, जिनमें डॉ. नारायण मथुरा जी भी हैं, जो वर्तमान में इस संस्था के सभापति हैं, 1976-77 में “नीदरलैंड हिन्दी परिषद” की स्थापना की, जो अभी तक यहाँ हिन्दी शिक्षण का कार्य कर रही है। डॉ. ऋतु शर्मा (नंनन पांडे) भी यहाँ “नीदरलैंड हिन्दी परिषद” व “सूरीनाम हिन्दी परिषद” के साथ जुड़कर नीदरलैंड व सूरीनाम के लिए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में सहयोग कर रही हैं। मंदिर में सप्ताहांत में हिन्दी व संस्कृत भाषा सिखाई जाती है साथ ही रामायण पाठ, सावन में शिव पुराण व पितृपक्ष में गरूड़ पुराण का वाचन व महत्त्व हिन्दी व सरनामी भाषा में किया जाता है। क्योंकि डच लोगों की भारतीय संस्कृति के प्रति बहुत रुचियाँ बढ़ गई हैं इसलिए इनका डच भाषा में मौखिक अनुवाद भी किया जाता है। यहाँ के मंदिर की दुकानों से आप पूजा की समस्त सामग्रियों, मूर्ति, धार्मिक ग्रंथ, हिन्दी भाषा की बाल पुस्तकों के साथ, भारतीय परिधान भी ख़रीद सकते हैं। 

देनहाग़ में भारतीय समुदाय की अधिकता के कारण वहाँ की क्रुखपॉल गली को “मिनी इंडिया” या छोटा भारत भी कहा जाता है। यहाँ आप बॉलीवुड की फ़िल्मों की डी वी डी से लेकर वो सब सामान ख़रीद सकते हैं जिसके लिए आप भारत जाने की सोच रहे हैं। यहाँ पर आपको प्रवासी भारतीयों की कपड़ों की दुकानें, जवाहरात की दुकानें व भारतीय, सूरीनामी के व दक्षिण भारतीय रेस्टोरेन्ट मिल जाएँगे। भारतीय-सूरीनाम के व्यंजन डच लोगों के प्रिय भोजन हैं। साल में एक बार “मिलान” (मिलन का अपभ्रंश रूप) देनहाग़, अलमेर, सूतरमैर में सूरीनाम भारतीय पाँच दिवसीय मेला लगता है जिसमें सूरीनाम व भारत के गीत, लोक नृत्य, व बॉलीवुड गायकों व कलाकारों को बुलाया जाता है। भारत से आने वाले लोग भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इस साल भारतीयों के सूरीनाम प्रवास के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सूरीनाम 18 मई से 5 जून तक व नीदरलैंड में 5 जून को बहुत सारे शहरों में इसका भव्य आयोजन किया जा रहा है। 15 अगस्त भारत के स्वतंत्रता दिवस का उत्सव भी बहुत उल्लास से मनाया जाता है। 

त्योहारों के रंग 

सभी भारतीय संस्कृति के त्योहारों को यहाँ पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। कुछ त्योहारों को छोटे व कुछ त्योहारों को महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसमें से होली को यहाँ पारम्परिक रूप में मनाया जाता है। फाल्गुन माह के प्रथम दिन से ही चौताल कार्यक्रम शुरू हो जाता है। शाम को लोग काम से आ कर मंदिरों या सामुदायिक भवनों में इकट्ठे होकर होली के भजन व जोगीरा, व पारंपरिक गीतों का गायन करते हैं। खेलने वाली होली से एक दिन पहले पारंपरिक रूप में होलिका दहन किया जाता है। सब लोग वहाँ एकत्र हो कर पूजा करते हैं फिर पंडित जी द्वारा होलिका दहन होता है। अगले दिन रंग की होली खेली जाती है। क्योंकि यहाँ ठंड अधिक होती है इसलिए पानी के रंगों से नहीं बल्कि सूखे रंग, गुलाल जो अब आसानी से उपलब्ध है, से होली खेली जाती है। पहले जब गुलाल उपलब्ध नहीं था तब टैलकम पाउडर को एक दूसरे पर छिड़क कर होली खेली जाती थी। कुछ स्थानों पर सप्ताहांत पर समुदाय भवन या मंदिरों में होली का रंगारंग कार्यक्रम रखा जाता है। नवरात्र के दिनों में मंदिरों में दुर्गा पाठ नौ दिन तक किया जाता है। लोग उपवास करते हैं व दसवें दिन मंदिर व घरों में बड़े उत्सव के साथ समापन किया जाता है। यहाँ लगभग सभी भारतीय परिवारों में एक छोटा मंदिर मिलेगा। भारतीय घरों को यहाँ आप आसानी से पहचान सकते हैं; अधिकांश घरों के बाहर लाल झंडी व धार्मिक चिह्न देख सकते हैं। अब दस दिन का गणेश उत्सव, जगन्नाथ यात्रा, दुर्गा पूजा भारतीय त्योहारों को भी नीदरलैंड में बहुत बड़े समारोहों के रूप में मनाया जाने लगा है। इन उत्सवों को मनाने के लिए कोई सरकारी अवकाश अभी तक नीदरलैंड सरकार ने घोषित नहीं किया है किन्तु आप इन त्योहारों के लिए अपने काम व विद्यालयों अवकाश ले सकते हैं। हिन्दू विद्यालयों में प्रमुख भारतीय त्योहारों पर अवकाश रहता है। यहाँ के टीवी चैनलों पर भी भारतीय त्योहारों का प्रसारण किया जाता है। 

इंटरनेट से मिटती दूरियाँ 

आजकल इन्टरनेट ने भारत और नीदरलैंड को बहुत पास ला दिया है अब प्रवासी युवा पीढ़ी भारत में अपनी जड़ों को खोज कर फिर से अपना अस्तित्व बना रहे हैं। प्रवासी भारतीय विशेषकर सूरीनामी भारतीय अपनी सनातन संस्कृति को अपनी आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए अब बहुतायत में भारत भ्रमण कर रही है। भारतीय सरकार द्वारा ओसीआई कार्ड की सुविधा ने भारत व नीदरलैंड की दूरियों को मिटा भारत व नीदरलैंड के मैत्री व व्यवसायिक संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बनाने का काम किया है। 

सूरीनामी प्रवासी भारतीयों का नीदरलैंड की राजनीतिक व्यवस्था में भी पूरा योगदा है। आर्थिक व्यवस्था व उसकी उन्नति के योगदान में भी भारतीय पीछे नहीं है। आज के आधुनिक युग को चलाने वाली आधुनिक कंप्यूटर तकनीक भी, ज़्यादातर भारतीयों के हाथों में ही है। नीदरलैंड की शायद ही कोई कंपनी होगी जहाँ भारतीय काम न करते हों। अभी हाल के पिछले पाँच वर्षों के आँकड़ों से पता लगता है कि यहाँ लगभग एक लाख से अधिक भारतीय यहाँ आ चुके हैं। यहाँ की प्रसिद्ध इलैक्ट्रिक कंपनी फिलीप ने भी भारत में फिर से अपनी शाखा स्थापित की है। भारत की भी बहुत-सी कंपनियाँ यहाँ आ गई हैं। टाटा स्टील समूह यहाँ भारत का सबसे पुराना समूह है जिसने डच लोगों को रोज़गार देने में अहम योगदान दिया। 

सच कहें तो हम व हमारे प्रवासी भारतीय पूर्वज ही भारतीय संस्कृति व भाषा के पहरेदार हैं। 

भारतीय संस्कृति के प्रहरी

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टिप्पणियाँ

शैली 2023/05/19 04:37 PM

अच्छा लगा कि भारत से बाहर एक भारत जिन्दा है

Anima Das 2023/05/19 06:40 AM

उत्कृष्ट आलेख... सुंदर जानकारी... वास्तव में... विदेश में रहते हुए भी मूल संस्कृति से जुड़े रहना अत्यंत हर्ष का विषय है...

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