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चीखता मौन

 

(स्त्री दिवस के उपलक्ष्य में)

 

आज एक नहीं, 
दो द्रोपदियों की लाज लुटी है
आज फिर से आदम और हौवा की बेटी
निर्वस्त्र खड़ी है
नारी होना इतना शापित है तो
देवी की प्रतिमा मंदिर में क्यों है लगी
 
जब बाँटा जाता है नारी अस्मिता को भी
राज्यों की सीमाओं में, 
तो फिर क्यों संपूर्ण भारत का
नारा लगाया जाता है
न जाने कितनी श्रद्धाओं को
यूँ ही रोज़ काटा जाता है
क्या पुरुष के पौरुष को
केवल इसी से तौला जाता है
 
क्या नहीं ये किसी की बेटी, 
किसी बहन, किसी की माँएँ हैं? 
फिर क्यों सब निशब्द बन कर
मौन को अपनाए हैं? 
आवाज़ नहीं तो क़लम उठाओ
इतिहास को तुम फिर न दोहराओ
 
एक अबला की हाय ने
ध्वंस कर दिया था इन्द्रप्रस्थ
अंबा के प्रतिशोध की प्रतिज्ञा से
बाणों की शय्या पर सो गया था देव व्रत
 
नारी अब तुम ही नारी के लिए
आवाज़ उठाओ
चंडी बन रण में आओ
मौन नहीं शस्त्र उठाओ
दुर्योधनों को मार गिराओ!

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