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भूख 

कभी-कभी आपको जीवन में कुछ लोग ऐसे मिल जाते हैं जिनसे आपका दूर-दूर तक कोई ख़ून का रिश्ता नहीं होता फिर भी वह आपके सबसे नज़दीक होते हैं। आपके हर सुख-दुख में आपके साथ सबसे पहले वही खड़े होते हैं। ऐसे ही कुछ लोगों को मिलाकर नीदरलैंड में मेरे अपने परिवार के अतिरिक्त मेरा छोटा सा एक और परिवार है। जिसमें सभी धर्मों समुदाय के लोग हैं। जिसमें ओपा प्लोप (Opa Plop) बच्चों के सबसे प्यारे दादा जी हैं। उनका असली नाम ‘रामबाऊत मायर’ है। क्योंकि वह नीदरलैंड टेलिविज़न पर बच्चों के कार्यक्रम के “कबाऊतर प्लोप” जैसे दिखाई देते हैं इसलिए मेरे बच्चे उन्हें “ओपा प्लोप” कह कर बुलाते हैं। ओपा प्लोप सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद से ज़्यादातर अपनी केरीवेन के साथ नीदरलैंड तथा दूसरे देशों में कैंपिंग करना पसंद करते हैं। पूर्वी ध्रुव से लेकर दक्षिण ध्रुव तक सभी जगह वह अपनी केरीवेन के साथ भ्रमण कर चुके हैं। लगभग 25 वर्षों से वह दक्षिण लिम्बर्ग के एक किसान के फ़ार्महाउस पर चार हफ़्तों के लिए रुकते हैं। यहाँ हर वर्ष उनके तीस से अधिक कैंपिंग के साथी चार से छह सप्ताह के लिए एकत्रित होते हैं। यह फ़ार्महाउस बहुत बड़ा है। इसमें आठ से दस हज़ार भेड़े हैं; जो बच्चों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। हर दिन बच्चों के लिए कोई न कोई कार्यक्रम रखा जाता है। इस जगह से कई देश जैसे जर्मनी, फ़्रांस और बेल्जियम कुछ ही घंटोंं की दूरी तय कर जाया जा सकता है। इसलिए हम भी अक्सर बच्चों के साथ इस कैंपिंग पर एक हफ़्ते के लिए ओपा प्लोप के साथ आस-पास के देशों में घूमने जाते हैं। ओपा इन सब देशों के ऐतिहासिक इलाक़ों से बहुत अच्छे परिचित हैं। कुछ इलाक़ों में वह अपने सैनिक कार्यकाल के समय रहे भी थे। इस बार जब हम ओपा के पास कैंपिंग के लिए गये तो ओपा हमें “drie puntland” दिखाने से गए थे। यहाँ पर तीन देशों की सीमाएँ एक साथ मिलती हैं फ़्रांस, जर्मन और बेल्जियम। यह एक पर्यटक स्थल है। बच्चों और बड़ों के लिए काफ़ी कुछ देखने के लिए है। काफ़ी देर तक घूमने के बाद बच्चों ने कहना शुरू किया हमें बहुत ज़ोर की भूख लग रही है। ओपा ने मज़ाक़ में उनसे पूछा, “भूख लगी है? या कुछ खाने का मन है?” छोटी बेटी ने मज़ाक़ में कहा, “अगर थोड़ी देर में मुझे खाना न मिला तो मैं मर जाऊँगी।” बड़ी बेटी ने ओपा से पूछा, “भूख लगना और कुछ खाने का मन करना एक ही तो बात है? जब हम भूखे होते हैं तभी तो पेट खाने के लिए माँगता है?” 

ओपा ने कहा “नहीं बेटा भूख क्या होती है? इस बात को हम नीदरलैंड के लोग बहुत अच्छे से जानते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की भूख हम कभी नहीं भूल सकते।” 

बात करते-करते हम रेस्टोरेन्ट तक पहुँच गए थे। खाने का ऑर्डर दे कर हम नियत जगह पर बैठ गए। 

बड़ी बेटी ने ओपा से फिर से पूछा, “ओपा आप क्या बता रहे थे? नीदरलैंड तो यूरोप के चार अमीर और समृद्ध देशों में से एक है। फिर यहाँ कैसे भुखमरी रही होगी?” 

ओपा ने पूछा, “तुम सच में इस बारे में जानना चाहती हो?” 

दोनों बेटियों ने अपने अपने सर हाँ में हिलाकर जानने की उत्सुकता को व्यक्त किया। ओपा के साथ हम जब भी घूमने जाते हैं बच्चों को कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है जिससे बच्चे बहुत ख़ुश होते हैं। 

ओपा ने बताया, “बात सन्‌ 1944 की बात है। एमस्टर्डम में उस समय बहुत ख़राब स्थिति थी। आज तुम उस समय के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकती हो कि उस समय हमारे पास न बिजली थी, न कोयला, न ही ज़मीनी गैस थी। जिसके कारण आज नीदरलैंड की गिनती यूरोप के अमीर देशों में की जाती है। हमारे पास साइकिलों के टायर पर चढ़ाने के लिए रबड़ भी नहीं थी और न ही यहाँ-वहाँ जाने के लिए कारें ही थीं। घरों में खाना बनाने के लिए केरोसीन का तेल भी नहीं होता था। दिन में एक बार राशन कार्ड दिखाने पर सरकारी रसोई से पानी वाला सूप या आलू के छिलके वाला सूप दिया जाता था। जिसके लिए कड़कती ठंड में घंटोंं लंबी क़तार में इंतज़ार करना पड़ता था जो उस समय बहुत मुश्किल होता था।” 

“ओपा क्या आपको भी उस लंबी लाईन में खड़ा होना पड़ता था?” बड़ी बेटी ने उतावले होते हुए पूछा। 

“हाँ ज़्यादातर बच्चे और महिलाएँ को  ही सूप की लंबी लाइन में खड़े हो कर इंतज़ार करना पड़ता था। घर के ज़्यादातर पुरुष सेना में देश के लिए लड़ रहे थे,” ओपा ने जवाब दिया। 

“अच्छा ओपा आप कह रहे हो की सरकारी लोग कॉलोनी में एक जगह आ कर सूप बाँटते थे। तो घर जाते-जाते तो सूप ठंडा हो जाता होगा, फिर उसे गर्म कैसे करते होंगे लोग?” 

“सूप या खाने को गर्म करने के लिए लोग कहीं से मिले टीन के डिब्बों में ही लकड़ियों को जला कर स्टोव की तरह उपयोग कर खाना बनाते थे। जिन क्षेत्रों पर जर्मनी सेना का क़ब्ज़ा था उनकी स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब थी। कभी-कभी वहाँ भोजन की इतनी कमी हो जाती थी कि लोग कुत्ते, बिल्लियाँ, ट्यूलिप के बॉल, चुकन्दर और आलू के छिलकों का सूप बना कर खाते थे।” 

“क्या कह रहे हो ओपा? क्या सचमुच लोग अपने पालतू जानवर को खा जाते थे?” छोटी बेटी ने जब यह सुना तो उसकी छोटी-छोटी आँखें आश्चर्य से बड़ी-बड़ी हो गई। उसने अपनी सॉफ़्ट टॉय बिल्ली को कस कर अपने सीने से लगा लिया। यह देख ओपा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “डरो नहीं तुम्हारी बिल्ली के साथ ऐसा कभी नहीं होगा।” 

“अच्छा ओपा आगे बताओ न आप क्या कह रहे थे कि घर में खाना गर्म करने का कोई साधन नहीं था?” बड़ी ने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा। 

ओपा ने बताना शुरू किया, “हाँ ईंधन की कमी के कारण ट्राम, रेल के बीच तारकोल के लकड़ी के ब्लॉक ध्वस्त हो गए थे, लोग उन्हें उठा कर ले आते थे। अवैध रूप से पेड़ काटे जाते थे। ऐम्सटर्डम के न्यू मार्केट में जहाँ यहूदी लोग रहते थे और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उन्हें वहाँ से निष्कासित कर दिया था, उनके ख़ाली घरों की लकड़ियाँ को ला कर आपातकालीन समय के लिए रखते थे। लोग इतनी ज़्यादा संख्या में मर रहे थे कि लोगों को जलाना तो दूर दफ़नाने के लिए भी जगह मिल पाना बहुत मुश्किल था। ज़मीनें बहुत सख़्त हो गई थीं। ताबूतों की लकड़ी को ईंधन के रूप में उपयोग किया जा रहा था।” 

“जब ताबूतों की लकड़ी जलाने के काम में लेते थे तो शवों का क्या करते थे? क्या उन्हेंं यूँ ही सड़ने के छोड़ दिया जाता था? बड़ी बेटी ने ओपा से पूछा। 

“नहीं ऐसा नहीं करते थे, क्योंकि पहले ही बहुत महामारी फैल गई थी इसलिए एक एक और मुसीबत मोल लेना नहीं चाहते थे। ऐम्सटर्डम और आसपास के इलाक़ों में शवों को फ़रवरी 1944 से अगस्त 1945 तक ख़ाली पड़े चर्चों में संगृहीत किया जाता था। बच्चों में बढ़ते कुपोषण को देखते हुए ‘ईस्टर चर्च’ के कार्यालय द्वारा लगभग 50,000 कुपोषित बच्चों को नीदरलैंड के पश्चिमी भाग से निकाल कर उत्तरी नीदरलैंड में किसानों के परिवारों में रखा गया। 

“मेरे माता-पिता मेरा बहुत अच्छे से ध्यान रख रहे थे पर फिर भी मुझे कुपोषण की बीमारी हो गई थी। एक बार मुझे ब्रोंकाइटिसस हो गया तो डॉक्टर ने कहा मुझे सही भोजन नहीं मिला तो शायद में बच न पाऊँ। जर्मन सैनिकों ने जिन गाँवों या शहरों से खाद्य और ईंधन आता था वहाँ की लाइन ख़त्म कर दी थी। घरों में ईंधन के रूप में और घरों को गर्म रखने के लिए चिमनी में उपयोग किया जाने वाला कोयला लिम्बर्ग और बेल्जियम की खदानों से आता था, जो बंद हो गया था। इस कारण लगभग साढ़े चार लाख लोगों को बहुत नुक़सान पहुँचा। लगभग बाईस हज़ार लोग भुखमरी से मर गए थे। 

“अक्टूबर में देश के जर्मनी के क़ब्ज़े वाले हिस्सों में भोजन की कमी बढ़ने लगी। पश्चिमी नीदरलैंड के शहरों में विभिन्न खाद्य पदार्थों के गोदाम जल्दी से ख़ाली हो गए। नवंबर 1944 के अंत तक ऐम्सटर्डम जैसे शहरों में राशन की मात्रा नियत कर दी गई। बड़ों को एक हज़ार कैलोरी का खाना दिया जाना निर्धारित किया गया जो बाद में 1945 के अंत तक यह घट कर 580 कैलोरी रह गया था। जनवरी 1945 में बहुत कड़ाके की ठंड थी नदियाँ नहरें जम गई थीं। नाव से सामान लाना ले जाना असंभव था। इसके साथ ही जर्मनी सेना ने नीदरलैंड के बंदरगाह और पुलों को भी नष्ट कर दिया था। इस कारण उत्तर और पश्चिम की लगभग 250,000 हेक्टेयर तक की ज़मीन जलमग्न हो गई, जिस कारण जल मार्ग का यातायात पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। काला बाज़ारों में भी सारा सामान ख़त्म हो गया। एक किलो आलू पूरे परिवार का एक सप्ताह का भोजन था। सर्दी से बचने के लिए घरों के फ़र्निचर को जलाया जाने लगा। शहर के लोग भोजन की तलाश में न जाने कितने किलोमीटर पैदल, जर्जर बच्चा गाड़ियों और साइकिलों को धकेलते ठंड में नंगे पाँव, गाँवों में फूल गोभी या आलू की तलाश में चलते और फिर अपने क़ीमती सामान, गहने, घड़ियों, लिलन की पोशाकों और कभी-कभी अपनी अस्मिता के बदले एक या दो सप्ताह का भोजन पाते। जैसे-जैसे आकाल बढ़ता गया वैसे-वैसे हताशा बढ़ती गई, भूख मिटाने की यह यात्राएँ कई-कई हफ़्तों तक चलतीं। भोजन की तलाश में यह यात्रा फ़्रिसलैण्ड तक पहुँच जाती थी। पश्चिमी नीदरलैंड के शहरों ऐम्सटर्डम, रौतरदाम और देनहॉग में आकाल के साथ महामारी भी फैलने लगी थी। मार्च 1945 का महीना मृत्यु दर में चरम सीमा पर था।” 

“फिर आप यहाँ तक कैसे पहुँचे? क्या आपको भी ठंड में पैदल चलना पड़ा था? पर आप तो पहले से ही कमज़ोर थे। फिर इतना लंबा सफ़र कैसे तय किया होगा?”छोटी बेटी ने ओपा से सवाल किया। 

“पिताजी ने अपने मन पसंद पियानों को बेच कर एक कास (सूखा मक्खन) की बड़ी भेली ख़रीदी थी। इसके अलावा माँ ने अपनी शादी की अँगूठी बेच कर हमारे लिए डबल रोटी और मक्खन ले लिया था।  एक लकड़ी की गाड़ी  थी, जिसमें  जब कभी हम बीच पर जाते तो उसमें सब सामान रख कर ले जाते थे। बस उसी गाड़ी  में मेरे माता-पिता मुझे और घर में बचे खाने और कुछ ज़रूरत का सामान लेकर छह दिनों की पैदल यात्रा करते ऐम्सटर्डम से उत्तरी नीदरलैंड के शहर ख्रोनिंगगन पहुँचे। हमारी लकड़ी की गाड़ी में उस समय क़ानून के हिसाब से अधिक खाना था। यदि हम उस समय पकड़े जाते तो शायद कालाबाज़ारी के जुर्म में मौत की सज़ा भी मिल सकती थी पर ख़ुशक़िस्मती से ऐसा हुआ नहीं। माँ ने सभी सामान लकड़ी की गाड़ी के नीचे एक रज़ाई में छुपा दिया था। 

“वहाँ से हमें आईजलमेर नदी पार करनी थी। जैसे ही हमने नदी पार की, अगले ही दिन वह पुल बमबारी में टूट गया। इस बार भी क़िस्मत ने हमारा साथ दिया इसलिए हम बच गए। वहाँ पहुँच कर हमने रेड क्रॉस सोसाइटी के कैंप में शरणार्थी के रूप में अपना नाम लिखाया।” 

“पर आप तो अपने ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर गये थे तब आप अपने देश में शरणार्थी कैसे हो सकते थे?” बड़ी बेटी नेपाल से पूछा। 

“उस समय की बात अलग थी। सब जगह युद्ध शरणार्थी कैंप लगे थे। 

“हमें रात को वहाँ सोने की सुरक्षित जगह मिल गई। पिछले बीस वर्षों में कभी ऐसी कड़ाके की ठंड नहीं देखी। वहाँ उपस्थित सभी लोग यही बात कर रहे थे और सच में उस साल की ठंड हमें बाक़ी सालों की ठंड की तुलना में बहुत ठंडी लग रही थी। शायद उस साल की परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी थी।” 

“फिर आप ओमा मारिया के बेटे कैसे बन गए ओपा?” छोटी बेटी ने पूछा। 

“हा हा, हा, तुम्हें सब कुछ जानना है, खोजी बंदर,” ओपा ने हँसते हुए कहा। “सुनो फिर—क्योंकि मैं कुपोषण का शिकार था इसलिए रेडक्रॉस सोसायटी के एक सदस्य ने वहीं गाँव के एक समृद्ध किसान परिवार से बात कर हमारे रहने का इंतज़ाम करवा दिया। वह लोग बहुत दयालु थे उन्होंने हमें रहने के लिए एक बड़ा-सा कमरा और गर्म कपड़े व बिस्तर दे दिए। मेरे पिता उनके खेतों में काम करते और माँ उनकी रसोई में हाथ बँटाती। किसान की पत्नी मारिया बहुत ही नेकदिल औरत थी वह हर रोज़ मुझे छह से सात बार खाने के लिए देती थी ताकि मैं जल्दी से ठीक हो जाऊँ। कभी-कभी मेरा मन भी नहीं होता था फिर भी मुझे खाना, खाना पड़ता था। 

“मम्मा भी ऐसा करती है। मुझे ज़बरदस्ती खाना खिलाती है,” छोटी बेटी ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा। 

“मम्मा सही करती है। जब ठीक से खाना खाओगे तो शरीर ताक़तवर रहेगा और बीमारी पास नहीं आएगी और बड़ी होकर मेरी तरह देश के काम आओगी,” ओपा ने छोटी बेटी को समझाते हुए कहा। 

“फिर क्या हुआ ओपा?”बड़ी बेटी ने उत्सुकता से पूछा। 

“फिर, फिर नीदरलैंड के जर्मनी से आज़ाद होने के बाद मेरे पिताजी ने यहीं ज़मीन लेकर खेती का काम करना आरंभ कर दिया और फिर हम लोग यहीं उत्तरी नीदरलैंड में ही बस गये। बड़े होने पर मैंने भी फ़ैसला किया की मैं भी एक सैनिक बन कर अपने देश की रक्षा करूँगा।” 

ओपा अभी अपनी कहानी सुना ही रहे थे कि हमारा भोजन आ गया। हम सब भोजन करने लगे। हमने महसूस किया की हमारी टेबल के साथ वाली टेबल पर एक परिवार बैठा था। उस परिवार में एक वृद्ध महिला थी। जो ओपा की कहानी सुन रही थी और जब ओपा ने अपनी बात कह ली तो वह वृद्ध महिला ओपा की तरफ़ नरम आँखों से देखती हुई बोली, “मुझसे ज़्यादा इसके बारे में कोई और नहीं जान सकता। इस आकाल के समय में मुझे और मेरे भाई को दो अलग-अलग परिवारों में पालन पोषण के लिए भेजा गया। मुझे फिनहाऊज भेज दिया गया था और मेरे भाई को दूसरे किसी गाँव में और जब युद्ध समाप्त हुआ तो मैंने अपने भाई के बारे में पता करना चाहा किन्तु मुझे आज तक उसकी कोई ख़बर नहीं मिली है। फिर मैं अपने परिवार को ढूँढ़ने वापस ऐम्सटर्डम पहुँची तो वहाँ भी मुझे कोई नहीं मिला था। हमारा घर युद्ध में टूट गया था। म्यूनिसिपल कार्यालय के पास उनके बारे में कोई सूचना न होने कारण मुझे फिर से यहाँ अपने मेज़बान परिवार के लौटना पड़ा,” यह कहते कहते उस वृद्ध महिला की आँखों से आँसू बह निकले। 

“रो मत ओमा हमारे ओपा आपके फ़ैमिली को ढूँढ़ देंगे। ओपा बहुत सारे लोगों को जानते हैं। है न ओपा, आप कर सकते हो ना?” दोनों बेटियों ने एक साथ ओपा से सवाल भरे अन्दाज़ में पूछा। 

ओपा ने कहा, “वादा नहीं करता पर कोशिश कर सकता हूँ।” उस महिला ने अपना नाम व फ़ोन नंबर ओपा को दिया और ओपा ने भी अपना नंबर उस महिला को दिया। 

उस दिन मैंने देखा की मेरी दोनों बेटियों जो हमेशा किसी न किसी बहाने से थाली में खाना छोड़ दिया करती थीं, उन दोनों ने आज अपनी प्लेट में परोसा गया सारा भोजन ख़त्म किया। शायद उन्हें यह समझ आ गया था कि भोजन का सदैव आदर सम्मान करना चाहिए। समय कभी भी एक सा नहीं रहता। 

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