त्रिशंकु
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. ऋतु शर्मा1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
शर्मा जी का लड़का कई साल बाद विदेश से चार हफ़्तों के लिए भारत आ रहा था। घर में बेटियों और उनके बच्चों व अन्य रिश्तेदारों के आने से पूरे घर में चहल-पहल मची हुई थी। वैसे तो शर्मा जी का बेटा जब अठारह साल का था तभी से बाहर ही रहता था, पर तब वह पढ़ाई के लिए वहाँ गया था। बाद में उसकी नौकरी अमेरिका की एक अच्छी कंपनी में लग गई थी, तब से वह वहीं रहता था। इस बार वह अपने अमेरिकी बीवी और दस साल के बेटे के साथ आ रहा था। अब तक परिवार का कोई सदस्य उसकी बीवी व बच्चे से साक्षात् रूप में नहीं मिला था। यह पहला अवसर था,
बेटा घर आ गया शाम को घर में पार्टी रखी गई। शर्मा जी का पोता दूसरे बच्चों के साथ जल्दी घुल-मिल गया बस हिन्दी साफ़ नहीं बोल पा रहा था। घर के बच्चे उसे अपने दोस्तों से मिलवा रहे थे।
"यह हमारा बाहर वाला ममेरा भाई है, इसे हिन्दी नहीं आती यह भारतीय नहीं ऐन आर आई है।"
कुछ ही देर में बच्चा शर्मा जी के बेटे के पास पहुँचा और बोला, “पापा आप अमेरिका में हमेशा मुझे कहते हो मुझे भारतीय संस्कृति और भाषा सीखनी चाहिए। अमेरिकन लोग भी मेरा अमेरिका में जन्म होने के बाद भी और हमारी अमेरिकी नागरिकता होने पर भी हमें भारतीय ही मानते हैं, अमेरिकन, नहीं। फिर यहाँ भारत में यह लोग मुझे भारतीय न कह कर ‘बाहर वाला या ऐन आर आई’ क्यों बुला रहें हैं?”
बेटे के मुँह से यह बात सुन शर्मा जी का बेटा सोचने को मजबूर हो गया, सच ही तो कह रहा है बेटा आख़िर हमारी पहचान क्या है?
क्या सच में हम त्रिशंकु हैं?
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