भीषण गर्मी
काव्य साहित्य | कविता अमित कुमार दे1 May 2023 (अंक: 228, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
भीषण गर्मी, अतृप्त धरा,
पशु-पक्षी बेसुध पड़े,
नदी-तालाब ख़ुद प्यासे,
पेड़-पौधे हर कोई तरसे,
अंबर, मनुष्य पर अट्टहास कर रहा,
मनुज, अपने किए पर पछता रहा,
ताड़-तड़ाग सब हो गया सून,
नहीं उसमें है एक भी बूँद।
मनुष्य मृगतृष्णा-सा भटक रहा,
पानी बिन सिर पटक रहा,
चारों ओर हाहाकार मचा,
प्रकृति ने दिया ज़ोरदार तमाचा।
प्रकृति रौद्र रूप दिखा रही,
धूप नहीं आग उगल रहा,
भौतिकता से लोलुप होकर,
जीव-जगत में त्राहिमाम मचा,
जल बिन मछली प्यासी है,
चारों ओर घोर उदासी है,
कोहराम ऐसा मच गया,
बादल फिर से ठग गया।
तरु-लताएँ झुलस चुके,
अबंर देख, कर जोड़ चुका,
मेघ हँसी-ठिठोली कर गया,
अनंत गगन में खो गया॥
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