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धरती! अंबर चूम रही है

 

मानसिक प्रताड़ना झेलकर, 
स्वस्थ काया को क्षीण कर जाते, 
ऐसे-ऐसे धैर्यवान भी, 
भूतल पर पाए जाते। 
 
शब्द भेद ऐसा न कीजिए, 
लगे किसी के उर में, 
वक़्त बदलते देर न लगता, 
है ये नियति के दस्तूर में। 
 
अपने लिए वक़्त दीजिए, 
ये बातें हैं सुनी-सुनाई, 
जो लोग दूसरों में वक़्त बिताए, 
वह एक दिन मुँह की हार खाए। 
 
दिल को हमेशा बड़ा रखिए, 
मन में आए अच्छे विचार, 
सकारात्मकता से ऊर्जा मिले, 
ख़त्म हो जीवन से द्वेषाचार। 
 
देख नयन जल बह गया, 
अपना दुःख-संताप, 
कर्मयोगी को याद किया, 
कर्त्तव्य पथ पर चल दिया। 
 
ग़रीब देख शब्द भेद किया, 
पल-पल मुझे धिक्कार दिया, 
नियति की चक्की घूम रही है, 
धरती! आज अंबर चूम रही है। 

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