मज़दूर
काव्य साहित्य | कविता अमित कुमार दे1 Jun 2023 (अंक: 230, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
मैं मज़दूर दिवस क्यों मनाऊँ?
सिर्फ़ काग़ज़ पर क्यों दिखाऊँ?
अगर मैं मज़दूर दिवस मनाऊँ,
तो परिवार का भोजन कैसे जुटाऊॅं?
मेरे नाम पर होता सिर्फ़ लीपापोती,
काग़ज़ पर दिखाई देती फोटोग्राफी,
राजनीति व्यपार भी अच्छा ख़ासा चल जाता,
नाम मेरा लेकर अपना जेब भर जाता।
सिर्फ़ मज़दूर दिवस मनाने से,
काग़ज़ पर शोर मचाने से,
मज़दूरों का शोषण कम हो जाता,
तो वह भी अपने बच्चों को पढ़ा पाता।
मज़दूरों की कभी छुट्टी नहीं होती,
वो तो सपने में भी काम तलाशता,
या यूँ ही दो वक़्त की रोटी के लिए,
ख़ून-पसीना वह निरंतर न बहाता।
भीषण गर्मी में काम पर वो जाता,
कड़कड़ाती ठंड में पसीना बहाता,
भीगता बारिश में, नींव वह रखता,
इसलिए तो वह मज़दूर कहलाता।
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