चुप हूँ शान्त नहीं
काव्य साहित्य | कविता अनिकेत तोमर1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
एक ख़्याल मैंने भी पाला है
एक बात मुझे भी कहनी है
चुप हूँ शान्त नहीं
ख़ामोशी भी एक उबाल-सी लगती है
पीर इतनी है सीने में कि
अब तो साँस भी भारी लगती है
नींद भी अब आती नहीं मुझे कुछ ख़ास
एक चिंता है जो चिता-सी लगती है
रास्तों पर चल पड़ा हूँ कुछ ऐसे
कि अब कुछ भी लगता नहीं
मगर एक प्रयास-सी लगती है।
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